दर्द

उसकी आहें बहुत से सवाल करती हैं |
चलती तो है राहबर संग  
पर खुद के जवाब से अनजान रहती है |
मौन पहेली की तरह आती है ,
और सृजन करके चली जाती है |
अपने सवालों का जवाब वो ताउम्र ...
न ढूंड पाती है |
खुद के दर्द को समेटकर 
सबके चेहरे में ख़ुशी लाती है |
सुन्दर संस्कारों और अच्छे आचरण 
बच्चों में भर कर सबका घर सजाती है |
पर अपनी चाहत किसी से न कह पाती है |
वो दबी - दबी सी आह 
बस सुलगती ही रह जाती है |
फिर  आसुओं में उन्हें बहाकर
वो खुदको सुकून दिलाती है | 
प्यार तो सब करते हैं उसे ...
पर एहसास देने से कतराते हैं |
अपने बेमतलब के अहम् की खातिर 
आपस के प्यार को न समझ पाते हैं |
शायद ये सब उपर वाले की माया है |
अरे हम भी तो ऐसे  ही कह रहे हैं ,
ये तो चलती - फिरती रचना का साया है |

पुकार

कोई काफिला  तेरे कुचे से  जब गुजरता होगा   |
तेरी बन्दगी में फिर दो बोल तो वो कहता होगा  |

तेरी रहमत से ही तो सारा जहान आज रौशन है |
तेरी मर्जी  बगैर तो पत्ता भी कहाँ हिलता होगा  |

तेरे सजदों ने ही दिलों में  सुकून दिला रखा है |
वर्ना इस दुनियां में  इसके सिवा क्या रखा है |

तेरा नाम  ले - लेकर बजाते तो हैं सब ताली |
पर तेरे नाम को बाँट  कर दे रहें हैं सब गाली |

ये तेरी रहमत का फिर  कैसा  खेल निराला है |
देख तू भी रहा है फिर कुछ क्यु न कर  रहा है |

ये जलजला न जाने कब तक आग बरसायेगा |
आके तू रोक ले नहीं तो कुछ गलत हो जायेगा |      

वो गहरी रात का साया

वो रात एक बार फिर से महक उठी होगी |
उसने जब चाँद के कानों में कुछ कहा होगा |

तपती धुप भी कुछ देर को ठहर  गई होगी |
एक नज़र उसने इबादत की जो डाली होगी |

मैं जानती हूँ की हर राह पर तू मिलता है |
तेरी महक ही तो तेरे होने का सबब देती है  |

ये गहरी रात इस बात का बनती  है गवाह |
उस रात चाँद तेरी पलकों में छुप गया होगा |

मुझे गिला नहीं की , मेरे तस्सवुर में तू क्यु है |
गिला  है की तेरे तस्सवुर में फिर मैं क्यु नहीं |

हरेक रात के अन्धेरें  में आँखें खोजती है उसे |
तभी वो आकर आज मेरे ख्वाब सज़ा गया होगा |

मेरी तो हर रूह उसकी ही बख्शी हुई नेमत है |
तभी वो मुझको छु कर आगे चल दिया होगा |