प्यारी सी दुआ


जिंदगी तो उसने खबसुरत  दी थी ,
जीना हमे आया ही नहीं !
खुशिया तो उसने हजारो दी थी ,
गमो से उभरना  हमे आया ही नहीं !
खुशनुमा पल उसने बेपन्हा दिए थे ,
वक़्त से लम्हे चुराना हमे आया ही नहीं !
प्यार तो उसने हमे बेहद किया था ,
हमे प्यार निभाना आया ही नहीं !
सोचते  तो थे की अब संभल जायेंगे ,
वक़्त ने तो पलटना कभी जाना ही नहीं !
अब तो  फकत फ़रियाद ही ये करते हैं ,
उसके गुलशन मै बाहर भर दे तू !
न इस कदर गुनाह करेंगे  कभी ,
इस बार तो खुदाया  माफ़ कर दे तू !

प्यारा सा रिश्ता

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ तेरा है , कुछ  मेरा है ||
कहीं  लिखा नहीं , कही पढ़ा  नहीं |
फिर भी जाना - पहचाना है |
कुछ  मासूम सा , कुछ अलबेला   |
कुछ  अपना सा , कुछ  बेगाना |

ये मासूम सा जो , रिश्ता है |
कुछ  तेरा है , कुछ  मेरा है ||

कुछ  चंचल सा , कुछ  शर्मीला |
कुछ  सुख सा , तो कुछ  संजीदा |
कुछ  उलझा सा , कुछ  सुलझा सा |
मस्ती से भरा , कुछ  खफा - खफा |

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ  तेरा है कुछ  मेरा है ||


कड़ी धूप मै ये , साया जैसा  |
अँधेरी रात मै ये , जुगनू जैसा  |
कभी रस्ता है , कभी मंजिल है |
किसी  धागे से भी ये , बंधा नहीं |


ये जो प्यारा सा रिश्ता है |                        
कभी तेरा है , कभी मेरा है |

ये तो सच्चे मोती के जैसा है  |
दिल की सीपी मै , कैदी जैसा है |
सबकी नजरो से , ढांप लिया |
कभी मन दिया , कभी एतबार किया |
सब कुछ  इस पर ही , वार दिया |
                            
कुछ  मेरा है , कुछ  तेरा है |
ये प्यारा सा जो , रिश्ता है ||

तमन्ना


सच मै बेजार हो गई  ये दुनिया .......
लगता है हम इसे प्यार नहीं करते |
रहते भी हैं उसके दिल में 
फिर भी इज़हार  नहीं करते |
तमन्ना  तो रखते है चाँद की
पर उसका दीदार नहीं करते |
खुशबु लेते हैं गुलाब की
मगर काँटों से प्यार नहीं करते |
सुनते तो हैं उसकी मगर
उसपे एतबार नहीं करते |
और कहते हैं की दुनिया बेजार है |
पर किसी का इंतजार 
हम हरगिज़ न करते  |

मीठा सा एहसास



जब कोई दूर रहकर भी ............
हरदम पास नज़र आता है !
दिल को थोडा सा नहीं ...........
बेहद  करार आता  है !
जब उस दुरी मै और...................
 इजाफा हो जाता  है !
तो बेचेनी का अज़ब सा.........
 फिर हाल हो जाता है !
सोचते तो थे कि उससे अब ...........
कुच्छ न कहेंगे हम ,
पर क्या करे दोस्ती का .............
फिर से ख्याल आ जाता है !
अब उसे केसे ये यकीं दिलाये हम........
की तेरे बगेर जीना तो दूर ..
मरना भी बेहाल हो जाता है !
हमारी बेबसी का तो ये सबब है अब
लगता है जेसे हरदम ............
उसके ही आसपास हैं हम !
किसी को नज़र ..............
आये न आये तो क्या ?
पर मीठा सा एक एहसास .............
तो हर दम पास है अब !

दोस्ती


एक चिगारी अंगारे से कम नहीं होती !
सादगी भी सिंगार से कम नहीं होती !! 
अपनी अपनी सोच का फर्क है वर्ना !
दोस्ती भी मोहबत से कम नहीं होती !!

सफ़र



यु तो और भी हैं....... ख्वाहिशे
कहे तो कीससे ..............कहे हम !
हर कोई अपनी ही धुन मै है
फरियाद करे तो कीससे ........करे हम !
सबकी मंजिल का  पता अलग है
चले तो किसके ........साथ हम !
अपनी तो मंजिल  सबसे जुदा है
तो फिर क्यु  न...........
तन्हा ही सफ़र........ करे हम !
मिलेगा गर कोई मंजिल मै राही
तो कुच्छ दूर साथ चल पड़ेंगे हम......
बिना मतलब के इंसा को ...
केद तो हरगिज़ ........न करेंगे हम !
साथ रह कर भी तो हर दम .........
तन्हा ही सफ़र.......... करते  है सब !
फिर साथ रख कर किसी को ...
तन्हाई का दर्द........ न दे सकेंगे हम !
 क्यु  न आज से अपनी मंजिल का सफ़र
 खुद ..........ही  तय करे हम !
और अपनी बेचेनी .......का सबब
किसी और से अब  ना कहे हम !

नेट की दुनिया

नेट की दुनिया
वो प्यारी - प्यारी बातें ,
                दिल को बहलाती रातें |
वो तेरा मेरा मिलना ,
        इक दूजे से फिर कुछ  कहना |
यारो संग जीना - मरना ,
            मिलने की ख्वाइश करना |
वो रोज - रोज की बातें ,
              वो कसमें ,  वो सोगातें  |
वो रूठ - रूठ कर जाना ,
          फिर इक  दूजे को मनाना |
न कुछ खोना  न ही पाना ,
              यादों को गड़ते  जाना |
नई - नई कहानी कहना ,
             उनके वादों पर चलना |
न कोई बंधन न ही डर ,
         बस मस्त गगन मै उड़ना |
ना - ना , हाँ - हाँ करते - करते
            फिर नई राह पर बढना |

पेड़



इंसानों से बड़ा पेड़
                      मगर ज़मी से जुड़ा पेड़ !
इंसानों की खातिर फिर
                       कितने तुफानो से लड़ा पेड़ !
धरती  की भूमि पर .............
                         चित्र सरीखे खड़ा पेड़ !
जाने किसके इंतजार मै ............
                         सड़क किनारे खड़ा पेड़ !
पंडित और मोलवी की बाते सुन
                            पल भर न डिगा पेड़.!..
धूप रोक फिर छाया देकर ........
                          फ़र्ज़ निभा फिर झड़ा पेड़ !
सीने मै रख हवा बसंती
                           आंधी मै फिर उड़ा पेड़ !
खेतो मै पानी लाने को
                           बादल से जा भीड़ा  पेड़ !
फल खाए जिसने उसने ही काटा
                           जान शर्म से गड़ा पेड़ !
इंसा की जरूरतों को पूरा करते  ...........
                           कटा ज़मी पर पड़ा पेड़ !

सोनिया गाँधी

                                                                            राजनीती से तो  हमारा दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है पर दिल ने चाहा की किसी एसे व्यक्तित्व पर लिखा जाये जो बड़ी हस्ती से तालुख रखता हो , फिर क्या था जहन में सोनिया जी का नाम आ गया और हमने भी कलम को गति देते हुए उनके सकारात्मक पहलुओ को लिखना शुरू कर दिया ! हमारा उदेश्य तो उनके राजनीती पहलुओ को न देखते हुए नारी के सुंदर व्यक्तित्व को उजागर करना था ! क्युकी राजनीती तो इन्सान के अपने असली पहचान को ही ख़तम कर देती है और रह जाता है सिर्फ बाहरी आवरण जिसमे किसी भी तरह के प्रहार का कोई फरक ही महसूस नहीं होता और वो इसका आदि हो जाता है जिसमे से एहसास शब्द का अर्थ ही ग़ुम हो जाता है ! राजनीति इन्सान को इन्सान की हकीकत से दूर ले जाने का काम बखूबी करती है तभी तो वो उस दर्द के करीब नहीं पहुँच पाती ! चलो छोड़ो हमारा तो सिर्फ इतना कहना था की हमारी भी सोनिया जी के साथ बिताये कुच्छ यादो के पल हैं जो हमने उनके साथ तब बांटे थे जब वो हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री राजीव गाँधी जी के साथ बॉम्बे में अपना उत्सव...... के दोरान  पधारी थी ! बस उन्ही को जेहन में रख कर आज उनके बारे में लिखने को दिल कर गया !
                                                                               सोनिया जी का जन्म ९ दिसम्बर १९४७ को इटली के छोटे से गाँव ओर्बस्सानो में हुआ था मैडम परिवार की होने पश्चात् भी उनमे सस्कारो की कोई कमी नहीं दिखती !जब वो १८ साल की हुई तो उनके पिता ने उन्हें अंग्रेजी पड़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया ! वहां वो ३ साल रही इसी दोरान १९६५ में इनकी मुलाकात एक खुबसूरत जवान लड़के से हुई ! दोनों में प्यार बढता गया और इसे शादी का रूप मिल गया जब सोनिया जी ने पहली बार अपनी सास का परिचय  भारत की इतनी महान हस्तियों में पाया तो उनसे मिलने  से वो घबराती रही पर धीरे धीरे इनकी मुलाकात ने दोस्ती का रूप ले लिया ! १९६८ में राजीव जी व् सोनिया जी शादी संपन हुई ! सोनिया जी ने बिना कोई आपति के हिन्दुस्तानी रीती - रिवाजो को बखूबी अपना लिया और धीरे - धीरे हिंदी भाषा को भी सिखने लगी ! अपनी जिंदगी में उन्होंने बहुत उतर चड़ाव देखे  हम उनकी हिम्मत की दाद देते हैं , किसी दुसरे देश से आकर अपना इतना मजबूत परिचय  बनाना किसी भी नारी के लिए फ़क्र की ही तो बात है ! अपने परिवार में होने वाली एक के बाद एक मोत को अपनी आखों से देखना ये बहुत बड़ा दर्द  ही तो है जिसे अपने अन्दर दबा कर आने वाली विपतियो का सामना करने के लिए फिर से कमर कसना और  उसके बाद भी अपने होंसले को बनाये रखना और विपति का पूरी तरह सामना करना !
                                                                                                      अपने पति श्री राजीव गाँधी की मृत्यु के ६ साल बाद तक सोनिया जी ने अपनी बच्चो  की परवरिश में बिताये और फिर १९९४ में अपने पाति के नाम से किताब छाप कर अपने होने का एहसास दिला अपनी चुप्पी  को फिर से तोडना चाहा ! राजीव जी की मृत्यु के बाद जब कांग्रेस पार्टी कमजोर पड़ गई  तो उसको मजबूती से खड़े करने का काम भी सोनिया जी ने बखूबी से किया ! शायद घर में पहले से बसे राजनीति माहोल का ही असर था जो वो इसे बखूबी निभा भी पाई ! इसे  इंदिरा जी की कला और राजीव जी का साथ भी कहे तो गलत न होगा  ! राजनीती की अधिक जानकारी न होने पर भी उन्होंने अपनी मिट्ठी  आवाज़ के जादू और हिंदी के थोड़े बहुत ज्ञान  के चलते हिंदुस्तान की जनता पर अपनी छाप छोड़ ही दी ! इस तरह जनता से अपने लिए  प्यार बटोरने में  सफल भी हुई  ! इतना प्यार मिलने के बाद भी इंसानियत हार गई और कुच्छ लोगो ने उन्हें इस समर्पण को नज़र अंदाज़ करते हुए दुसरे देश की होने का कहा ...........उनके  इस समर्पण को जिससे पूरी  जिंदगी इस देश को अपना कहने का हक भी छीन लिया ! पर उन्होंने इस बात को भी बखूबी से निभाया और उन सबका मन रखते हुए वो पिच्छे हट गई और अपने देश को आगे ले जाने में पूरा सहयोग  देती रही और आज भी दे रही हैं हमे ये देख क़र बहुत  ख़ुशी होती है की उन्होंने एक विदेशी हो कर भी अपने सभी फ़र्ज़ को बखूबी से निभाया फिर चाहे वो पत्नी बनकर हो , बहु बनकर , माँ बनकर और या फिर देश का एक अच्छा नागरिक बनकर ! अगर हम उन्हें राजनीती के नज़रिए से न देख कर एक एसी महिला के रूप में देखे जिसके जीवन में कई उतार - चड़ाव आये पर उसने हिम्मत से उनका सामना किया तो हमे सोनिया जी पर फ़क्र होता है ! आज भी वो राजनीती में अपनी सक्रीय भूमिका बखूबी निभा रही हैं और अपने देश के साथ - साथ अपने दोनों बच्चो  का साथ बखूबी निभा रही हैं ! आज फिर हम एक और नारी के अध्याय का अंत करते हैं !
                                ये राजनीती है दोस्तों सोचता है  क्या !
                                     आगे - आगे देखिये होता है क्या ! !      

इंतजार


तितली सा मन बावरा उड़ने लगा आकाश ,
सतरंगी सपने बुने मोरपंखी सी चाह !
आमंत्रित करने लगे फिर से नये गुनाह ,
सोंधी सोंधी हर सुबह , भीनी भीनी शाम !
महकी सी मेरी सुबह और बहकी बहकी धूप ,
दर्पण मै न समां  रहे ये रंग बिरंगे रूप !
जाने फिर क्यु  धुप से हुए गुलाबी गाल ,
रही खनकती चूड़िया रही लरजती रात !
आँखे खिड़की पर टिके दरवाजे पर कान ,
इस विरह की रात का अब तो करो निदान !
सिमटी सी नादां कली आई गाव से खूब ,
शहर मै खोजती फिरती अपने सईयाँ का प्यार !
आँखों मै छपने  लगे विरह गीतों के गान ,
बाहर से कुच्छ न बोलती बाहर हास परिहास !

''लोकतान्त्रिक देश ''

          
भावना हो तो कोई भावनाओ की कदर करेगा !
निराशा मै बड़ने वाले कदमो को रोक सकेगा !
मेहनतकश हाथो को चूमेगा.................. 
मासूमो को फाँसी मै चड़ने से रोक सकेगा !
दुल्हन को प्यार और सम्मान दे कर .....
उसे घर की चोखट पर प्यार से बसने देगा !
घर की देहलीज़ को फिर रोशन करेगा !
अपनी कहकर दुसरो की बात सुनेगा !
सही और गलत का इंसाफ करेगा !
अपने देश की ज़मी को फिर वो गुलज़ार करेगा !
जरे जरे मै रोशन वो उसका नाम करेगा !
मूलक को मूलक से जोड़ने का काम करेगा !.
इस तरह ये देश को लोकतान्त्रिक नाम दे देगा !

यात्रा करो अनंत मन की

          इन्सान दिन- रात अपनी इच्छाओ की पूर्ति मै व्यसस्त रहता है ! अपने मतलब के लिए कही हाथ जोड़ता है और कही बाहें फेलता है ! लेकिन संसार मै न्याय से अन्याय , सम्मान से अपमान , ख़ुशी से दुखी होकर दुनिया का वैभव इकठा किया जा सकता है पर परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती ! जब तक भगवान की कृपा नहीं होगी तब तक वैभव के शिखर पर बैठ कर भी इन्सान की आँखों से आंसू ही झरते रहते हैं !जब भगवान की कृपा होती है तब आप जंगल मै रहो या वीराने मै हर जगह खुशियाली साथ रहती है सम्पुरण संतुष्टि प्रकृति मै या माया मै नहीं होती थोड़ी देर के लिए तो लगता है की सब कुच्छ मिल गया लेकिन कुच्छ देर बाद ही लगता है की अभी बहुत पाना बाक़ी है ! इन्सान प्रेम की अभिलाषा मै बहुत सारे रिश्ते बनाता है लेकिन प्रेम भी पूरा नहीं होता ! भटकाव तो सभी के जीवन मै आता है लेकिन एसा महसूस  होता है की थोड़ी दूर और चलु शायद कहीं शांति , विश्राम ,या चैन मिल जाये !
      टेगोर ने कहा था -------मै हर रोज़ सुख के घर का पता मालूम करता हु लेकिन हर शाम को फिर भूल जाता हु ! सुबह से रोज़ शुरू करता हु लेकिन शाम तक अँधेरे के सिवा कुच्छ प्राप्त नहीं होता ! अधिकतर लोग इस पीड़ा से त्रसत हैं ! क्या करे ? कोन सा मार्ग अपनाये ?जीवन का सघर्ष खत्म होगा भी या नहीं ? हमारे जीवन मै शांति , प्रेम , आनंद लाभ  आएगा भी या नहीं ? इस तरह के प्रश्न इन्सान के मन मै लगातार उभरते ही रहते हैं ! हम सभी जानते हैं की जो वास्तु जहां पर होती है वो वही से मिलती भी  है पर सबसे पहले तो जरुरत है की वस्तु  की सही खोज हो ! एसा न हो की वस्तु कहीं और हो और हम खोजे कहीं और ! अगर हमारा सुख खो गया है तो एसा जान लेना चाहिए की सुख चैन  बाहर की वास्तु नहीं अपितु ये तो अपने अन्दर का ही खज़ाना है ! शांति मन के अन्दर होती है , प्रेम हृदये मै होता है और आनंद आत्मा मै होता है !इन सबको वही से प्राप्त करके वही सुरक्षित रखना पड़ता है ! अपनी कामना के अनुरूप ही इन्सान को आचरण करना चाहिए ! अगर व्यक्ति शांत रहना चाहता है तो उसे शांतिदायक वचनों का प्रयोग करना चाहिए ! उसकी दिनचर्या शांति से ही शुरू हो शन्ति से ही खत्म हो एसा प्रयास करते रहना चाहिए चाहे कितनी भी मुसीबत क्यु  न आ जाये !