माँ का स्पर्श


मेरी ख्वाइश है की मैं फिर से 
फ़रिश्ता हो जाऊ | 
माँ से इस तरह लिपटू की...
फिर से बच्चा हो जाऊ |
माँ से दूर मैं हो जाऊ 
ये कैसे हो सकता है |
माँ का साया तो हरदम 
पास  मेरे ही रहता है |
माँ जब कभी भी मुझे 
डांट कर  चली जाती है |  
मैं  मुहं  चिढाता  हूँ 
तो वो हंस के पास आती है |
माँ के डांटने मे भी 
प्यारा सा एहसास होता है |
उसके उस एहसास में भी 
प्यारा सा दुलार रहता  है |
हर पल वो मेरे दर्द को 
साथ ले के चलती है |
जब मैं परेशां होता  हूँ तो 
वो होंसला सा  देने लगती है |
माँ न जाने मेरे हर गम में  
कैसे  शरीक  लगती  है |
जेसे वो हर पल मेरे ही 
इर्द - गिर्द   रहती है |
कितना नाजुक और 
पाक सा ये रिश्ता है |
बिना किसी शर्त के 
हर पल  हमारे साथ रहता है |
ओर हमें  प्यारा सा
उसका स्पर्श हरदम 
मिलता ही रहता है |

समर्पण

चाँद तारों की बात करते हो 
हवा का  रुख को बदलने की  
बात करते हो 
रोते बच्चों को जो हंसा दो 
तो मैं जानूँ |
मरने - मारने की बात करते हो 
अपनी ताकत पे यूँ इठलाते  हो  
गिरतों को तुम थाम लो 
तो मैं मानूँ |
जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है
अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है  
किसी को अपना बना लो 
तो में मानूँ |
राह  से रोज़ तुम गुजरते हो 
बड़ी - बड़ी बातों  से दिल को हरते हो 
प्यार के दो बोल बोलके  तुम 
उसके चेहरे में रोनक ला दो 
तो मैं जानूँ |
अपनों के लिए तो हर कोई जीता है 
हर वक़्त दूसरा - दूसरा  कहता है |
दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो 
तो मैं मानूँ |
तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है 
खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है 
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो 
तो मैं मानूँ |

ये अनजान रिश्ते


ये अनजान  रिश्ते भी 
जिन्दगी में अजब से होते हैं |
जब - जब हम इनके बिना 
जीने की सोचते हैं |
जिंदगी का कोई प्यारा सा 
किया समर्पण हमें ,
इनके करीब फिर ले आता है |
क्योंकि  जब तक कोई 
हमारी कदर करता है 
तो हम बेखबर से रहते हैं |
और जब हमें जिंदगी से 
शिकायत होने लगती है  
तब  हमें वो फिर से 
याद आने लगते  है |
उनकी  खूबियों का 
पता तब चलता है |
उनका  हमपें  किया कर्म 
ये एहसास ब्यान करता  है की 
दुनिया में कोई पराया  नहीं 
यहाँ सब अपने हैं |
सिर्फ एक दुसरे के साथ 
प्यार बाँटने भर की देरी है |
रिश्तों को शक्ल देने 
भर की ही जरूरत है |
फिर किसी को प्यार न मिले 
ये मुमकिन ही नहीं |
फिर दुनिया में कोई तन्हा रहे 
इसकी गुंजाईश ही नहीं
जिन्दगी का सफ़र तो 
एक हसीन मेला है |
सुख और दुख
जिंदगी का रेला है |
कब तलख़ इससे...दूर 
उससे... दूर जायेंगे हम |
क्युकी जिससे जितना दूर 
जायेंगे हम , उसे उतना ही
करीब अपने पाएंगे  |
फिर क्यों  नफरत की 
ये दिवार बनाये हम 
हर एक शख्श से 
प्यार क्यों  न बढ़ाएं हम |
और एसा करके सबको 
अपना ही क्यों न
बनाते जाएँ हम |

          

बेटियाँ



कितनी प्यारी होती हैं  बेटियाँ |
हर घर को रौशन  बनाती हैं बेटियाँ |
पापा की भी दुलारी होती हैं बेटियाँ |
ओस की बूंदों सी नम होती हैं बेटियाँ |


कली से भी नाजुक होती हैं बेटियाँ |
स्पर्श  मै अपनापन ना... हो ,
तो भी तो झट से रो देती बेटियाँ |
रौशन  करता बेटा तो सिर्फ एक ही कुल को ,


दो -दो घरों की लाज निभाती हैं बेटियाँ |
सारे जहां से प्यारी होती हैं बेटियाँ |
सांसो मै बसी धरोहर होती हैं बेटियाँ |
विधि का विधान कहो, या 
दुनिया की रस्मों  को मानो ,
मुट्ठी  मै भरे नीर सी होती हैं बेटियाँ | 


चाहे सांसे ही क्यु थम जाये बाबुल की  ,
हथेली पीली होते ही पराई हो जाती बेटियाँ  |
तभी तो हर पल याद हमें आती हैं बेटियाँ |
सारे जहां से न्यारी होती हैं बेटियाँ |

इस्लाम के पांच स्तम्भ


            इस्लाम के बारे मै बहुत जानकारी तो नहीं है पर थोड़ी सी जानकारी जुटा कर थोडा आप के साथ बाँटने लाई हूँ अगर इसमें कोई कमी पेशी हुई तो माफ़ी भी चाहूंगी |
                                          सुना है इबादत की जिंदगी तो इन्सान पूरी जिंदगी जीता है | इस्लाम धर्म मै पांच एसी चीज़े हैं जो एहमियत रखती हैं | पैगम्बर ए  इस्लाम ने फरमाया था ... इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर कायम है | इस बात की गवाही देना की परमेश्वर के सिवा कोई वन्दनीय  नहीं है और मुहम्मद... परमेश्वर के दूत और भक्त हैं | नमाज़ कायम करना , जकात अदा करना , हज पूरा करना और रमजान के रोजे रखना | 
                                                        ये पांचों स्तम्भ ( pillars ) हैं जिनके ऊपर इस्लाम की ईमारत खड़ी होती है | क्युकी ईमारत एक होती है पर उसके आधार , स्तम्भ उसे थामे रखने की भूमिका अदा करते हैं | जिस प्रकार बिना स्तम्भ के ईमारत का खड़े रहना मुमकिन नहीं हो सकता उसी तरह इन पांच बातों को अपनाय  बिना इस्लाम की स्थापना भी नहीं हो सकती | इस्लाम को अपनाने का मतलब यह है की इन पांचों सतम्भों को अपने जीवन मै कायम करना | कहते हैं न की जिस प्रकार बिना रूह के शरीर बेजान है तो उसी प्रकार इन पांचों स्तंभों के बिना इस्लाम धर्म अपनाने का कोई मतलब नहीं , बाक़ी सब अपनी भावना के अनुसार उस रूप मै ढालने से है | 
1 _   शहादत   __ पहला स्तम्भ है शहादत  जिसमें खुदा को इबादत ( विनती ) करके पा लेना | खुदा पर विश्वास रखना |
2 _  नमाज़ __ दूसरा स्तम्भ है नमाज़ जिसमें  दिन मै पांच बार नमाज़ पड़ना और लोगों की गल्तियों को माफ़ करके उनकी मदद करना |
3 _   रोज़ा __ तीसरा स्तम्भ है रोज़ा जिसमे पुरे एक महीने तक 11 साल से ऊपर के सभी समुदाय को बिना खाए पीये व्रत रखना पड़ता है जिसमे कुछ  और चीजों पर भी संयम रखना होता है |
4 _   ज़कात __ चोथा स्तम्भ है ज़कात जिसमे अपनी कमाई मै से किसी संस्था को पैसा देना होता है  और गरीब लोगों की मदद करना भी होता है | 
5 _  हज __ पांचवा स्तम्भ हज है जिसमे अपने सामर्थय के हिसाब से हर मुस्लिम वर्ग को एक बार हज यात्रा करना कहा गया है इस तीर्थ मै दोनों स्त्री - पुरुष दोनों को जाना होता है | इस्लामी शिक्षकों का कहना है की हज भगवान के प्रति एक एसी अभिव्यक्ति होनी चाहिय जिसे किसी के कहने से नहीं बल्कि अपने अन्दर से खुदा के प्रति उत्पन्न हुआ प्यार जेसा होना चाहिय | और कहा जाता है की हज यात्रा का बखान नहीं करना चाहिए क्युकी ये तो आत्म  शुद्धी के लिए किया जाता है | 
             तेरी रहमत का जो हर तरफ असर हो जाये 
               सबकी जिन्दगी फिर खुश गवार हो जाये 
              दिखादे अब तू ही कोई रास्ता ये खुदा 
           की सबकी जिन्दगी फिर से गुलज़ार हो जाये 
           तू जो है ...तो हर तरफ नूर ही नूर बरसता है 
            इन्सान के ज़ज्बे मै उफान सा एसा दिखता  है 
               तेरे रहमों करम की ही तो ये बारिश है 
           जिसकी खुशबु  से सारा आलम यूँ  महकता है 
        किस कदर सारा काम चुटकियों मै तू कर गुजरता है 
           सारी कायनात को तू बस मै करके चलता है 
         तेरे इस ज़र्रानवाज़ी के तो हम भी तो हैं कायल
         तभी तो हर इक शख्श का तू ही इक सवाली है | 

कर भला हो भला


क्यु  मरने - मराने की बात करते हो |
क्यु बदलने - बदलाने की बात कहते हो |
ये तो जिंदगी का पहिंयां  है |
हर पल यूँ ही चलता जायेगा |
किसी के इशारे पर ऊपर ,
तो किसी के इशारे पे नीचे  आएगा |
ये बेकार की ही तो इक बहस है |
न किसी पर इसका ही  फिर असर है |
हर कोई अपनी रफ़्तार से है चलता |
किसी को किसी की क्या फिकर है |
जानती सब है फिर भी जिद्द पे तू अड़ी है |
न बदली है तू , न बदलेगी ये दुनिया |
ये बहस  ताउम्र एसे ही चलती  रहेगी   |
लोगों का हुनर उनसे कुछ न कुछ तो करवाएगा |
कुछ का असर अच्छा तो कुछ का बुरा कहलायेगा |
इसका असर तो पूरी दुनियां मै नज़र आएगा |
इतिहास के पन्नों मै फिर ये  लिखा जायेगा |
लोगों  की जुबाँ पर फिर उसका नाम आएगा |
तभी तो संसार मै वो उसकी पहचान करवाएगा | 

बहुत कठिन है मोहब्बत की राहें

प्यार की इस हसीन वादियों मैं एक बार तुम आके तो देखो |
हो न जाये इससे महोब्बत जरा इसे आजमा  के तो देखो |
                                   वो घड़ी भी आज आ ही गई जिसका युवावर्ग को बेसब्री से इंतजार था | सच मैं ये प्यार भी बड़ी अजीब सी  चीज़ होती है | किसी को पागल , किसी को दीवाना और किसी को म़ोत भी दे देती है ,  लेकिन प्यार करने वालों का दीवानापन तो देखो इसके अंजाम को जानते हुए भी इसकी राह मै चलने से पीछे नहीं हटते | प्यार करने का अंदाज़ बदल लेते हैं पर प्यार की राह पर चलना कभी कम नहीं करते | वेसे प्यार शब्द तो इंसां की रूह मै हरदम समाये रहता है बस फर्क सिर्फ इतना है हर एक ने इसका अपना - अपना पैमाना बना कर रखा है और अपने - अपने हिसाब से इसको  इस्तेमाल मै लाता है | अब अगर हम गोर  से सोचे तो प्यार का इज़हार करने और उसके लिए हाँ कहने के लिए एक दिन का समय बहुत कम है क्युकी वो तो पल -पल के एहसास से ही जीवित रहती है फिर एक दिन मै ये केसे मुमकिन हो सकता है | प्यार तो एक बीज की तरह होता है जिसको बहुत प्यार से सहेज कर रखा जाता है और समय - समय पर उसे पानी दे कर पालना पड़ता है | प्यार के तो वेसे बहुत से क़िस्से और  कहानियां हुई है जिसमे दुखद बहुत ज्यादा और सफल बहुत कम हुई हैं | वेसे प्यार का एहसास सच मैं बहुत सुखद होता है पर ये भी सच बात है की इसके मायने भी अलग - अलग हुआ करते हैं और प्यार मै इतनी ताकत है की सिर्फ उसके एहसास मै भी जिया जा सकता है | ये भी सच है की जिन्दगी का हर रिश्ता प्यार के बिना अधुरा है फिर वो प्यारा सा रिश्ता भाई - बहन का हो , माँ बाप का हो या फिर फिर प्रियतम का अपनी प्रेयसी के प्रति समर्पण का ही क्यु  न हो | इसलिए हर रिश्ते को जिन्दा रखने के लिए एहसास का होना बहुत जरुरी है | जब तक इसे हम सींचते रहेंगे ये तब तक जीवित रहेगा  और उसके सुखद एहसास को हम भोगते रहेंगे और जेसे ही हमने इससे मुहं  फेरा इसका अंत निश्चित है | ये एक कडवा सत्य है जो हर प्यार करने वाले की जिंदगी के लिए जरुरी है | प्यार के इस मोसम मै ये एक प्यार करने वाले की प्यारी सी कहानी है ...
                                     बिहार के गया जिले के सुदूर गाँव गालहोर मै 1934 मै जन्मे महादलित मुसहर जाति के एक अशिक्षित श्रम जीवी की ये कहानी है | जो प्यार के एहसास को बखूबी समझता था और उसी एहसास को पा कर उस दशरथ नाम के लड़के ने अपने प्यार को तकलीफ झेलते देख कर अपनी प्रेयसी के लिए पहाड़ को खोद कर रास्ता तक बना दिया | 1960 मै शुरू कर 1982 तक 22 साल की अपनी अथक मेहनत की बदोलत दशरथ ने सिर्फ हथोडी और छेनी की मदद से गह्लोर घाटी की पहाड़ी के एक  छोर 360  फिट लम्बा , 25 फिट ऊँचा और 30 फिट चोडा रास्ता खोद डाला | इन सबका कारण सिर्फ इतना था की उसकी जीवन संगिनी फगुनी को पानी लेने जाने और छोटी - मोटी जरूरतों  को पूरा करने के लिए इतनी बड़ी पहाड़ी को लाँघ कर जाना पड़ता था और उसकी प्रेयसी इसमें अकसर जख्मी होकर लोटती थी | दशरथ इस दर्द को सह नहीं पाता था और वो उसके इस दर्द से तड़प जाता था | मोहब्बत का जन्म संवेदनाओं से ही होता है | उसके लिए प्रेम के जो मायने थे उसे पूरा करने के लिए उसने इतिहास के पन्नों पर मोहब्बत  की किताब ही लिख दी | पटना से लगभग डेढ़ सो किलोमीटर दुरी पर बसे हुए गया जिले के अतरी ओर वजीरगंज ब्लोक के बीच की दुरी दशरथ के इस प्रेम के कारण 75 किलोमीटर से कम होकर सिर्फ 1 किलोमीटर ही रह गई  तब दुनिया की निगाहें इस नायक पर पड़ी जिसके प्यार ने सिर्फ अपने प्यार की खतिर  ही नहींबल्कि  सारे गाँव वालो की जिन्दगीको  ही खुशहाल कर दिया  | असल मै मोहब्बत का उफान यही है और हकीक़त भी | 
                  प्यार ...प्यार ...प्यार
           इसका कोई निश्चित समय नहीं ,
       यही वो नदी है जो निरंतर  बहती रहती है  |
      हर वक़्त हमारे ही भीतर विद्यमान रहती है |
        कभी वो बच्चे की तरह माँ से लिपटती है |
      तो कभी भाई बनकर बहन की रक्षा करती है |
     तो कभी प्रेयसी से मिलन को बेकरार रहती है |
     चित्रकार के लिए  चित्रकारी ही उसका प्यार है |
      संगीतकार का तो गीत ही उसका यार है |
    अरे लेखक की लेखनी अगर उसका संसार है |
      देश भगत को तो सिर्फ देश से ही प्यार है |
         तो प्यार पल भर को भी  ठहर जाये ,
              ये हमको गवारा नहीं है |
    क्युकी प्यार ही तो सबकी जिंदगी का सहारा है |
       हर एक के प्यार करने का अंदाज़ जुदा है |
    पर हर एक ने इसे प्यार के ही नाम से पुकारा है |

मत रो आरुषि



वेसे ये नई बात नहीं ये तो रोज़ का ही  नज़ारा हैं !
हर किसी अख़बार के  इक  नए  पन्ने मैं ...
आरुशी जेसी मासूम का कोई न कोई हत्यारा है !
पर लगता है आरुशी के साथ मिलकर सभी मासूमों ने
एक बार फिर से इंसाफ को पुकारा है !
क्या छुपा है इन अपलक निहारती आँखों मैं ,
ये कीससे गुहार लगाती है ?
खुद का इंसाफ ये चाहती है ?
या माँ - बाप को बचाना चाहती है ?
उसने तो दुनिया देखि भी नहीं ,
फिर कीससे आस  लगाती है !
जीते जी उसकी किसी ने न सुनी ,
मरकर अब वो किसको अपना बतलाती है !
गुडिया ये रंग बदलती दुनिया है !
इसमें कोई न अपना है !
तू क्यु इक बार मर कर भी ...
एसे मर - मर के जीती है !
यहाँ एहसास के नाम पर कुछ भी नहीं ,
मतलब की दुनिया बस बसती है !
न कोई अपना न ही पराया है
लगता है हाड - मांस की ही बस ये काया है  !
जिसमें  प्यार शब्द का एहसास नहीं !
किसी के सवाल  का कोई  जवाब नहीं !
तू अब भी परेशान सी रहती होगी  ?
लगता है  इंसाफ के लिए रूह तडपती होगी !
अरे तेरी दुनिया इससे सुन्दर होगी ?
मत रो तू एसे अपनों को !
तेरी गुहार हर मुमकिन पूरी होगी !
तेरे साथ सारा ये जमाना है !
कोई सुने न सुने सारी दुनिया की ...जुबान मै
 सिर्फ और सिर्फ तेरा ही फसाना है !