इंसाफ हुआ तो जरुर था



कई राहगीर गुजरे थे 
उस राह से ...
खुले बदन भूख से वो ...
कराहता था वहाँ
कुछ आह भरकर ,
कुछ दीन - हिन कहकर 

आगे भी निकलते थे |
पर रूककर हाल पूछने 
न कोई पास था गया |
एक साया
 बढकर ...
पलभर रुका जरुर था |
जिसे देख बच्चे की आँखों में 
एक सपना था सजा ...
सोचा चलो आज उसे अपनी 

भूख को जाहिर करने का 
जरिया तो मिला |
कई तरह से कैमरे में
फिर उसने उसे कैद था किया |
वो यक़ीनन हमें एक 

भला मानस ही लगा |
भूख और गरीबी ने जिसे 

झकझोर था दिया |
वह रह रहकर उसे 
पुचकार रहा था  |
जैसे सब कुछ मिल जाने का 
उसमे हौंसला हो भर रहा |
सोचा अब उसके भूख का 

निवारण हो जायेगा |
कुछ मिले न मिले ...
भूख का जुगाड हो जायेगा |
जब सुर्ख़ियों में .....
सारा खुलासा हुबहू आएगा |
हाँ ये सच है कि ... इस दर्द की
बोली खुलकर थी लगी |
पर इंसाफ की हक़दार सबको 

दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी   | 

छोटी सी इल्तजा

 

बस छोटी सी एक 
इल्तजा है तुमसे ...
कुछ देर पंछी बन...
उड़ने की मोहलत मुझे दे दो |
कभी चाँद में छुप जाऊ |
कभी बादल में समा जाऊ |
बस छोटी सी ये ख्वाइश
पूरी मेरी कर दो |
जो मैं रच दूँ कोई सरगम
तो बेहिचक गीत रचने का 
होंसला मुझे दे दो |
तपती रेत में जब 
जलने लगे पैर मेरे ...
तो निरंतर बढते रहने की 
ताकत मुझे दे दो |
हाँ हूँ मैं सागर सीमाओं को
अपनी खूब पहचानती हूँ |
तुम बस करके भरोसा
कुछ पल पंख पसारने का
वादा  मुझे दे दो |