केसा है आदमी


आदमी विज्ञापन , आदमी ब्रांड है !
आदमी पांच सितारा , आदमी डालर है !
आदमी पेटू , आदमी बेकार है !
आदमी ठोस नहीं आदमी तो पोला है !
आदमी चतुर नहीं , आदमी भोला है !
आदमी इटरनेट , साइबर का शोला है !
ये है आधुनिक आदमी ...............
नाचता , हांफता , दोड़ता
निरंतर बैचेन , बेलिहाज़ ......
वो तो पूंजी मै ही बदल गया है !
चंचल पूंजी .............
हर समय अस्थिर .........
न जाने हम क्या- क्या है आदमी ?
हमारी तो पकड़ से बाहर है आदमी !
हम क्या बताएं अब ..........
की केसा है आदमी ?

प्रसनंता केसे लायें

    
अपनी सीमाओ को हर दम पहचानो !
          आवश्कता हो तो खुद मै  परिवर्तन लाओ !
एक दुसरे से खुल कर बोलो  !
             अच्छे मित्र कभी न छोड़ो  !
गलती कर न घबराएँ !
              हर बार उसमे सुधार ही लायें !
हास परिहास से दिल बहलायें !
              अपनी दुनियां को सुन्दर बनाएं !
जीवन मै हर सपना देखें !
             पूरा करने फिर आगे बढ चलें !
अपने पूर्वाग्रहों को जीतें !
            अपने मै अच्छे विचार भरें !
हर दम चेहरे मै मुस्कान भरें !
            फिर अपने कर्तव्यों को आसान करें !

स्वागत 2011


चली चली देखो चली चली 
इतिहास के पनों मै अपना नाम ................
दर्ज करने 2010 चली  !
सुख - दुख का पिटारा 
हमको देकर ............
वो देखो...वो  अपने देश चली !
कहाँ हम भूलेंगे अब उसको 
हमने ही तो जोड़ा था उसको 
जेसे पतंग  संग डोर बंधी , 
चली - चली , चली - चली 
देखो वो तो हमसे कितनी दूर चली !
कितना समर्पण उसमे देखो 
अपना सब कुच्छ हमको सोंप 
वो ख़ाली हाथ ही पार गई 
चली चली , चली चली 
बिटिया बन वो तो  ससुराल चली !
न घमंड न कोई बेर 
बस इंसा की ये हाथों की मेल  
सबको सब कुच्छ दे ही दिया  
फिर से दामन अपना समेट 
इस दुनियां से नाता  तोड़ चली  
चली चली  , चली  चली
2011 को अपना काम सोंप चली !
कानों मै चुप से स्वागत ही  कहा 
फिर अपना दामन धीरे से छुडा ............
2011  के शोर मै खो सी गई ! 
देखो तो वो सच मै चली चली  !
आओ हम भी कुच्छ ...........
एसा करे 2010  को प्यार से
अलविदा कहें !
नव वर्ष के स्वागत मै लगें !
बधाई दोस्तों !

भविष्य का सम्बन्ध वर्तमान से

  इतिहास गवाह है इन्सान ने जब भी किसी विपदा ( विपत्ति ) का सामना अगर किया है  तो उसका जिम्मेदार वो खुद होता है | उसी के  द्वारा की हुई गलती का भुगतान वो बाद में  करता है  , क्युकी जब हम कोई फैसला  लेते हैं तो हमे सिर्फ वर्तमान का ही सुख दिखता है और उसी  ख़ुशी का भुगतान हमें  भविष्य में  दर्द सह कर करना  होता है | चलो आज हम इतिहास के कुछ  एसे ही वाकयों  पर नज़र डालते हैं जिससे सारी दुनियां अच्छे से परिचित है | अब रामायण को ही ले लेते हैं कौन  नहीं जानता रामायण को , इनके किरदारों को मेरे ख्याल से सभी भारतीय इस बात से वाकिफ हैं कि  ये हमारे देश का बहुत पवित्र  ग्रन्थ है | हम इसे पड़ते हैं इसकी पूजा करते हैं और दशहरे के आगमन के साथ ही  हर घर में  इसकी चर्चा सुनी जा सकती है | रामायण हमें इन्सान के हर रूप से पहचान करवाने का मौका देते हुए इंसान के हर किरदार से ताल्लुख करवाती है जैसे  किस तरह से चाल चल कर  केकई ने राम को बनवास दिया इससे उसकी चालाकी का पता चलता है फिर चारों भाइयो का एक दुसरे के प्रति समर्पण , सीता का पति के लिए त्याग , पिता का बेटे के प्रति प्यार और  रावण का लालच आदि |
रामायण में   इन्सान के हर चरित्र का  चित्रण बखूबी से  दिखाया गया है | हमारी हर पीड़ी उसे पढ़ती  है उसका बखान भी करती है पर अफ़सोस ,  उसे बहुत प्यार से समेट के रख भी देती है | हर एक के साथ बैठ कर श्री राम . सीता माँ , लक्ष्मण , भारत के बारे में सब चर्चा भी करते हैं की उन्होंने कितना बड़ा त्याग किया , लक्ष्मण ने श्री राम का कितना साथ दिया पर जिस मकसद को पूरा करने के लिए श्री राम , कृष्ण ने ये लीलाएं रचाई क्या  हमने उन्हें अपने जीवन मै ग्रहण किया ? नहीं किसी ने नहीं !  अरे .....जो खुद अंतर्यामी हो सारी सृष्टि जिसके इशारों पर चलती  हो , जिसकी रज़ा से एक पत्ता भी नहीं हिल पाता हो , उसे ये सब कष्ट सहने की जरुरत ही क्या थी ! ये सब हमारे लिए किया गया एक खूबसूरत प्रयास था की इन्सान ..........आगे जब भी कोई कदम उठए तो वो रामायण , महाभारत और बड़े - बड़े गर्न्थों से सबक सीख  सके  | उसने तो हर कदम पर हमारा साथ देना चाहा पर हमने कभी कोशिश ही नहीं की | हमने उसे सिर्फ और सिर्फ अपने  धर्म  का  नाम दे कर ही संभाल लिया | अगर हम सच में  रामायण और महाभारत जैसे  ग्रंथों को सम्मान देना चाहतें हैं तो उन सभी में  घटित सदाचार की बातों का अनुसरण करना ही होगा तभी हमारे ग्रन्थ सार्थक कहलायेंगें , वर्ना इन ग्रंथों को सिर्फ पूजना और सम्मान देना अपने आप से ही नहीं पूरी सृष्टी से धोखा होगा अगर हम इन से कोई सीख न ले पायें तो .............
                गाँधी जी ने बहुत खुबसूरत बात कही थी ........................
    भूल करके सिखा जाता है ,
              लेकिन इसका मतलब  यह नहीं
                          
 कि जीवन भर ..  भूल ही की जाये !
                                                                           अब देखो न अमेरिका ने अपने बल पर कभी किसी देश में तो कभी किसी देश में अपना अधिकार जमाना चाहा जिसका भुगतान उसे वर्ड ट्रेड सेंटर ......... के रूप में  देना पड़ा | अब पाकिस्तान को ही ले लो तालिबानों को शरण दी की वो उनकी मदद करेंगे पर नतीजा ये हुआ की आज वो ही इन पर भारी  पड़ रहें हैं उनके ही देश में रहकर तालिबान उन्ही का खून बहाने में लगे हैं  उनके जिन्दगी का मकसद न जाने क्या है ?  पर नाम जेहाद का लेते हैं जिसका इंसानियत से दूर - दूर तक  कोई भाईचारे से कोई परिचय ही न हो , तो वो इस शब्द के मतलब को भला क्या जान पाएंगे वो इन्सान की भावना को कैसे  समझ सकतें हैं | इंसान    प्यार , नफरत , आक्रोश , घमंड और समर्पण का एक पुतला भर है बस हमें  अपने अन्दर से अच्छे - अच्छे संस्कारों को उभारना है अपने अन्दर संयम लाना है | अगर इन्सान ही नहीं रहेगा तो धर्म का अर्थ ही कहाँ रहेगा क्या इतनी छोटी सी बात भी हम समझ नहीं पा रहें ? अब हम अपने देश को ही लेते हैं हमारे देश में  होने वाली छोटी - बड़ी घटना के जिम्मेदार  क्या सिर्फ वो लोग हैं जो वारदात करते हैं नहीं ये सच नहीं ......... क्युकी हमारी  समय पर न  कि गई लापरवाही ही उस वक्त के वारदात का कारण बनती है | तो अगर हम वर्तमान में  ठीक से काम करते हैं तो हमारा भविष्य बहुत हद तक सुरक्षित हो सकता है क्युकी बिना वर्तमान के भविष्य संभव ही नहीं | तो क्यु न हम अपने इतिहास  के पन्नों से ही कुछ अच्छा सीखकर उसे अपने जीवन को और खूबसूरत बना दें | 
                           

चुनो अपनी राहें


फकत मुकद्दर पर जिन्दा रहना ,
           निकम्मापन और बुझदिली है !
अमन की दुनियां मै मेहनत करके ,
            अपना हिस्सा वसूल करलो तुम !
उजड़ जायेगा चमन ये बाक़ी ,
             गर और कांटें न हटाओगे तुम !
गुलिस्तान की गरचे खेर चाहो ,
            तो चंद कांटें कबूल  करलो तुम ! 

अमन का पैगाम



हर किसी की जिंदगी मै एक मकसद होता है !
खुद बेवफा हो लेकिन तलाश वफ़ा की रखता है !!
                                     अगर हम दिल से ये चाहते हैं की हम अपने देश मै अमन का पैगाम लाये तो हमें सबसे पहले अपने आप को बदलना होगा सिर्फ किताबो मै पड़ कर लिख कर या मुहं  से कह देने भर से हम अमन हरगिज़ नहीं ला सकते ! अब देखो न हमारा देश तो पहले से ही इतने बड़े विद्वानों , ज्ञानियों से भरा पड़ा है फिर हम अब तक पूरी तरह से अपने देश मै  अमन क्यु  नहीं ला पायें   ! शायद हमरा देश के प्रति दिए  गये  योगदान मै कोई कमी तो इसका कारण नहीं ? क्युकी जब हम किसी अच्छे और शांतिपुरण  देश की कामना करते हैं , तो उन सब मै हमारी गिनती खुदबखुद हो जाती है और उसे सुंदर बनाने और  बिगड़ने का काम हमारा भी होता है फिर वो गलती कितनी भी छोटी क्यु  न हो ! फिर हम ओरों से अलग केसे हो सकते हैं हम भी तो उसी अंश का हिस्सा हैं  ! अब देखो न किसी की तरफ इशारा करके ये कहना की वो शख्श खराब है , वो गंदा है , उसे तमीज़ नहीं या फिर उसे किसी की फ़िक्र ही नहीं कितना आसान  सा होता है ! क्या हम इतनी आसानी से अपने दोष गिनवा पाएंगे हरगिज नहीं क्युकी एसा करना हमारे लिए बहुत कठिन हो सकता है ! इसीलिए जब किसी अच्छे  या बुरे  देश की बात होती है तो उस देश की नीवं  हमारे अपने घरों से ही हो कर निकलती है ! सबसे पहले हम ........ हमारे रिश्तेदार ........हमारा समाज .....और फिर देश की बात आती है ! क्या हम अपने परिवार मै वो संस्कार , प्यार , सम्मान  हर तरह का फ़र्ज़  बखूबी निभा पा रहें हैं क्युकी अच्छे और बुराई की शुरुवात तो हमारे घर से ही होने वाली है अगर हमारा व्यव्हार घरके हर सदस्य के प्रति  प्रेम पूर्ण होगा और उनमे समर्पण की भावना होगी तभी तो हम अपने समाज मै खूबसूरती ला पाएंगे ! और अगर हमारा व्यव्हार उनके प्रति क्रूर होगा तो वो बाहर जाकर उस नफ़रत से समाज मै जा कर  चोरी , लूटपाट  , बलात्कार और उग्रवाद को ही जन्म देंगे ! क्युकी इन सब बीमारियों की नीवं  तो घर से रखी गई है न ..............जो वो अपने अन्दर के तूफान को शांत  करने के लिए समाज वालों  को परेशान  करके करने वाला  है ! जिससे अमन और शांति जेसे शब्द अपने आप ख़त्म   होने लगते हैं ! तो हम तो ये भी कहते हैं !...............
                       सच है की तहजीब ही एक लाख की जान होती है !
                             फूल खिलते हैं तो आवाज़ कहाँ होती है !!
                                          आज फिर से अगर हम अपने देश को एक खुबसूरत देश बनाना चाहते हैं , तो हमे अपने परिवेश को बदलना होगा और  हमे अपने परिवार और देश को इतनी खुशियाँ इतना प्यार देना होगा की उनके अन्दर से नफ़रत किस बला का नाम है..................शब्द ही जुबान से ख़त्म हो जाये ! क्युकी मनुष्य जब भी कोई गलत काम करता है तो किसी बात से अवसादग्रस्त हो कर ही करता है हमे कुच्छ अच्छा करने के लिए दूर जाने की कोई आवश्कता भी नहीं है हमारे आस - पास ही इतना बड़ा समाज बसता  है , कि अगर हम मिलकर किसी एक  के दिल मै भी प्यार भर सके तो यु समझो की हमने अमन को वापस  लाने के बीज बो दिए , पर उसके लिए अपने आप मै ........... संयम , दुसरो के प्रति प्यार , दुसरो की गलतियों पर उन्हें माफ़ कर देना और आगे अच्छा करने का मोका देना होगा !
                                             किसी अच्छे को अच्छा कह देने भर से क्या परिवर्तन आएगा ? मेरे ख्याल से तो कुच्छ भी नहीं वो तो पहले से ही  अच्छा है पर किसी एसे को प्यार करना जो किसी अवसाद की वजह से गलत काम मै फंस गया है  और उसे अपने उस बात का अफ़सोस है पर कुच्छ कर नहीं पा रहा उसे कोई राह नहीं मिल रही कोई सहरा नहीं मिल रहा समाज उसे वो प्यार नहीं दे रही जिसकी वजह से वो उपर  उठ  सके तो फिर वो एक अच्छा आदमी केसे बन पायेगा अगर हमें समाज मै 5 लोग भी  किसी का अच्छा करते हुए  देखते हैं तो उनमे से एक तो अच्छा बनने की कोशिश जरुर करेगा ! तो किसी के एहसासों को छु कर , प्यार और सम्मान दे कर हम उसे उस दलदल से बाहर निकाल सकते हैं ! ये काम करने मै थोड़ी तकलीफ जरुर हो सकती है पर अगर सच मै अमन की चाह दिल मै है तो ये काम इतना भी कठिन नहीं , क्युकी जो खुद हमारे जेसा है उसे हमारी बात अपने जेसी ही लगेगी और वो उसका जवाब वाह वाह करके ही देगा और जिसके दिल मै हमारी बात का असर हो जायेगा वो इंसान ही बदल जायेगा और फिर एक विस्फोट की आवाज आएगी  क्युकी एहसास  तो सबके अन्दर एक से ही होते हैं फिर उस आने वाले परिवर्तन का रूप ही कुच्छ अलग होगा जिससे एक  सुंदर समाज बनेगा और फिर  एक एसा देश जिसे हम  अमन ( शांति ) के नाम से पुकारेंगे !
                                   किसी होड़ का हिस्सा नहीं हु ,
                                     ख़तम हो कुच्छ पलों मै !
                                     वो छोटा किस्सा  नहीं हु ,
                                 जो  रोक न पाउ बदहवासों को  !                                                                                                            

आरज़ू

जमीं पे बिखरी रेत को ,
आसमां की चाहत हो गई  !
उसे पाने की आरज़ू जो की ,
तकदीर को हमसे शिकायत हो गई !
दोस्तों अब ये मरहम , 
ना लगाओ मेरे जख्मो पर !
पत्थरों से मोहोब्त  करते करते ,
चोट खाने की आदत हो गई !

दर्द


क्या छुपा है इन बेबाक आँखों मै ,
क्या किसी के आने का इंतजार !
केसे निहारती हैं ये एक टक हमे , 
की शायद  कोई तो एसा आएगा !
जो मुझे इस गर्द से निकाल पायेगा !
क्या इन आँखों का इस कदर......... 
ये इंतजार कभी खत्म हो पायेगा !
जो इस के दर्द को समझ पाए 
वो मसीहा भी कभी आएगा !
उसे इस गुमनाम अंधेरो से ले जाकर 
उन सितारों मै फिर बसाएगा !
बहुत से सपने बसे हैं इन नन्ही आँखों मै 
न जाने किसकी किस्मत मै
ये सितारा फिर से जगमगाएगा !

मेरी मंजिल


           लिखती तो हर - दम हु ,  
                        क्युकी विचार  नहीं रुकते !
           फिर भी खालीपन सा ही  
                       हरदम न जाने क्यु रहता है !
          क्या प्यार ............?
                     नहीं ...प्यार तो सब करते हैं मुझे !
          क्या फिर  पैसा .......?
                    अरे नहीं सब कुच्छ तो है न मेरे पास !
          फिर क्या है वो ........?
                   जो हरदम मुझे झकझोरती रहती है !
          जो हर दम मुझे..........
                            अपने  पास बुलाती रहती है !
          जो वास्तव मे मै चाहती भी हु !
                  लेकिन लेखनी भी उसकी पूर्ति नहीं कर पाती  !
        शायद ये उन गरीबो का दर्द तो नहीं ?       
                   जिसको सोचने भर से दिल दहल उठता है !
           किसी की गरीबी......... हमारी ......
                   वाह वाह लुटने का एक जरिया भर तो नहीं ?
        हमारी ये कलम काश  उनके ...............
                     किसी एक के दर्द को कम कर पाती !
       तो हमे इस अत्याचार का ....
                     भागीदार तो न बनाती !
          

प्यार का अंदाज़


जिसने इश्क  किया ..........
         वो भला केसे न जानेगा !
इसमें बनते बिगड़ते रंग
         वो क्यु न पहचानेगा !
इश्क  मै मिले अवसाद..........
        का स्वाद केसा होता है !
दर्द भी जब आँखों से बहें.....
        तो उसमे भी प्यार होता है !
हर पल उसके इंतजार मै ......
          दिन गुलजार होता है !
हर पल उसे पाने की चाह मै ......
       अपना ख्याल ही कहाँ होता है !
पर आज के युग मै ........
     प्यार ने कुच्छ एसी करवट ली है !
उसके प्यार का अंदाज़ .....
          कुच्छ इस कदर निराला है !
थोड़े ही दिनों मै प्यार तो ..............
            रफूचक्कर ही हो जाता है !
जेसे की किसी फिल्म  का शाट........
            पल भर मै खत्म हो जाता है !

क्या है वास्तविकता



झूठ - झूठ और झूठ 
सच्चाई  का तो  दूर - दूर 
तक कोई परिचय ही नहीं !
क्या होती है वास्तविकता 
क्या हम जानते हैं ?
मेरे ख्याल से तो नहीं !
क्युकी हमारे जीवन मै 
उसका तो दूर - दूर तक
कोई आभास ही नहीं 
हम तो सिर्फ और सिर्फ 
जीते भी हैं तो ........... 
तो सिर्फ ये सोच कर 
की ....अगर एसा किया .......
तो वो क्या कहेगा !
अगर वेसा किया
तो वो क्या सोचेगा !
हम तो अपने आप से ही 
परिचित नहीं ..........
की मै कोंन हु ?
क्या चाहता हु ?
मुझे ख़ुशी  केसे मिलेगी ?
हम तो सिर्फ दूसरों  .......
के गुलाम भर हैं !
दुसरो की बातों .......
पर जीते हैं  !
और उन्ही के लिए 
मरते भी रहते हैं !
फिर हमे कितनी भी 
तकलीफ ही क्यु न
हो रही हो !
पर हमे तो बस 
एसे ही जीना है !
क्यु एसा क्यु ?
जब  हर कोई .........
इस दर्द से परेशान हैं ,
तो फिर क्यु इस कदर  
झूठी जिंदगी जीते हैं हम 
जिसमे खुद अपना परिचय 
ही भूल जाते हैं हम 
क्यु  न इस अंदाज़ को 
बदल डाले हम !
वास्तविकता से अपना ही
परिचय  करा  डाले हम !
और इतिहास के सुनहरी .
पन्नो मै अपना ही.......... 
नाम रच डाले हम ! 

महंगाई का असल परिचय

महंगाई - महंगाई और सिर्फ महंगाई  जहां देखो बस इसी का शोर सुनाई  दे रहा है ! मिडिया , अखबार  दूरदर्शन सब इसी का गुणगान  कर रहे हैं ! क्या सचमुच इतने परेशां हैं हम इस बढती हुई महंगाई से या फिर ये सिर्फ किसी एक मुद्दे  को लेकर उसमे बहस करने भर की ही बात तो नहीं हो रही  है ! अब देखो न एसी कोंन सी चीज़ हमारी राह मै बाधा डाल  रही है जिससे हमे इस बढती हुई महंगाई का आभास  हो रहा है ! क्या सब्जियों के बड़ते दाम ? क्या दाल की बढती कीमते ? अगर ये सब हमे महंगाई का पता दे रही है तो ये सब सिर्फ एक मुद्दा है और कुच्छ नहीं ! क्युकी इन सब के बावजूद हमारे घर के बच्चे बड़े - बड़े स्कूलों   मै बड़ी - बड़ी रकम दे कर शिक्षा ग्रहण कर ही तो रहें हैं और जब स्कूल मै भी वो पढाई   ठीक  से नहीं कर पाते तो हम एक और मोटी रकम देकर उन्हें स्कूल से बाहर किसी  और अध्यापक के पास [ tution ] दे कर भी पढने भेजते ही  हैं ! जब की यही लाड प्यार उन्हें उनकी राह मै आगे बड़ने से रोक रहा है वो अपने पर विश्वास कम और दुसरे की बात पर ज्यादा विश्वास करने लगे हैं ! हम उन्हें वो सारी सुविधा जेसे बड़ी - बड़ी गाड़ी , महंगे - महंगे मोबाइल फ़ोन जेसी सुविधा देने वाली चीजें  आसानी से दिलवा देते हैं सिर्फ एक झूटी शान की खातिर जिसके बिना भी जीवन आसानी से यापन किया जा सकता है ! इन सब सुविधाओ की पूर्ति करते  हुए भी अगर हम ये कहे की महंगाई बढ रही है ! तो फिर हमारे लिए तो ये सब सिर्फ और सिर्फ कहने भर की ही बात लगती है ! 
                                                                     महंगाई का असल परिचय हम जानना चाहते हैं तो उन गरीब तग्बे के लोगो से पूछों .......... जो दिन - रात मेहनत तो करते हैं पर फिर भी दो वक़्त की रोती जुटा पाने के लिए बेबस हैं ! अगर जानना ही है तो उस रिक्शे वाले से पुछो........जो इन्सान को उसकी मजिल तक पहुंचा देने के बाद भी सिर्फ अपनी मेहनत का पैसा  पाने के लिए उसके सामने गिड़गिडाता   नज़र आता है ! क्या उसी वक़्त हमे महंगाई याद आती है जब हम किसी गरीब का हक छीन  रहे होते हैं ! तब तो हम उस गरीब रिक्शे वाले की तुलना मै सच मै गरीब हैं और हमे ये बढती महंगाई सच मै परेशान कर रही है ! 
                                                                  महंगाई भी अगर बढती है तो हमारे जीवन मै झांक कर ही बढती है  क्युकी महंगाई बड़ाने वाले भी हमारी गतिविधियों पर नज़र गडाए रहते हैं की अगर हर सुविधा हर घर मै आसानी से परवेश कर रही है तो फिर थोडा सा और बड़ा देंगे तो क्या फर्क पड़ जायेगा ! तो फिर वो हमारे कदम से कदम मिलाती रहती है और हम थोड़े वक़्त तो जोर शोर से शोर करते हैं फिर अपनी निजी जिंदगी मै मस्त हो जाते हैं ! अगर इस बड़ती  महगाई का असल जिंदगी मै सच मै फर्क पड़ रहा है तो वो है हमारे देश की गरीब जनता जो इसकी मार से इस कदर पिस रही है की तन ढकने के लिए कपडा तो क्या दो वक़्त की रोटी  जुटाना भी मुश्किल सा हो रहा  है ! उनके पास तो उस वास्तविक दर्द को झलने और चुप  रहने के सिवा अपनी बात को कह पाने का कोई माध्यम भी नहीं है ! जब पेट भरने को अनाज ही नहीं होगा तो जुबान मै अपनी बात कह पाने की ताकत भी कहाँ से आएगी जो वो इस दर्द.......... की उन तक आसानी से पहुंचा पाए जो की इस महंगाई को बडाते रहने  के असल मै हकदार हैं ! कहते भी हैं न ......................
                                        इन्सान भी उसी इन्सान से डरता है !
                             जिसके पास अपनी बात कहने की ताक़त होती है !
                   इन  बेसहारा बेजुबानों के पास तो न शरीर की ताकत है और न ही जुबान की और न ही हमारी तरह कलम की फिर महंगाई भी उनकी क्यु सुनेगी वो तो सिर्फ उनसे डरती है जो पलटकर  उन पर वार करने की हिम्मत रखता  हैं ! गरीब जनता से उसको क्या लेना देना ! उनका तो हमारे समाज मै कोई आस्तित्व ही नहीं है उनके अच्छे होने या बुरा होने का हिसाब कोई क्यु रखे उनकी जिंदगी कब शुरू होती है और कब खत्म वो तो शायद वो भी ठीक  से नहीं जान पाए हैं अब तक  ! महंगाई किस बला का नाम है इससे तो उसका दूर दूर तक कोई परिचय ही नहीं हो पाता ! और हम एक दुसरे से कह कर अखबारों और कलम के माध्यम से अपनी भड़ास निकलते रहते हैं और अपनी जिंदगी मै आगे चलते जाते हैं और महंगाई हमारी दोस्त की तरह हमसे कदम  से कदम  मिला कर चलती रहती है !
                                                                 महंगाई ही हमारे देश मै होने वाले एक बहुत बड़े तालमेल मै फर्क कर रही है ! जिससे आमिर लोग इतने आमिर हो  गये हैं की उनके पास इतना पैसा है की उन्हें इस बात का पता नहीं है और गरीब जनता इतनी गरीब होती जा रही है की उसके पास दो वक़्त की रोटी   भी उपलब्ध नहीं हो पा रही ! एक तरफ देश उन ऊँचाइयों  को छु रही  है जहां पहुचना बहुत गोंरव की बात है  और दूसरी तरफ गरीब जनता  भूख से अपनी जान दे रही है ! जिसका  किसी को लेश मात्र भी पता  नहीं कि क्या ये हमारे देश के लिए शर्म  की बात नहीं है !  काश हम इस तालमेल को किसी तरह ठीक  कर पाते और अपने देश की भूखी जनता को उपर  उठा कर एक समृद्शील देश का निर्माण कर पाते ! हम मिलकर अपने देश के हर नागरिक के अन्दर एक जोश को भर कर बेकारी ,  भ्रष्टाचारी व् बेरोजगारी जेसे शब्दों  का ही अंत कर पाते , और ये सब करना मुश्किल हो सकता है पर असंभव कभी नहीं !      

खून का रंग

काश हर कोई इस बात को
अच्छे से जान पाता !
की खून का रंग सच मै 
सबका लाल है होता  !
तो ये मज़हब के नाम से 
खिंची गई दीवारे ,
इतनी मजबूत तो.... 
हरगिज़ न हो पाती !
हर इंसा एक दुसरे 
की जान का दुश्मन 
 इस कदर  न होता !
अगर वो इस बहते खून की 
कीमत जो  समझता ............
अपने अज़ीज़ दोस्तों पे हरदम 
जुल्म यु  न करता ..............
नाम धरम का लेकर किसी को 
तडपते न देखता ..............
अपने लहू को उससे मिलाकर 
एक मिसाल कायम ही वो करता 
सारे धरम के ठेकेदारों की 
जुबान पर एक ताला लगा 
 देश मै अमन की ............ 
एक मिसाल कायम करता !
हर  मजहब को एक सूत्र 
मै बांध कर ..............
अपने सफ़र का...............
फिर  यु आगाज़ करता !
काश हर कोई अपने इस .........
खून की कीमत ..........
को जान पाता !
फिर सारे देश को एक ही 
बंधन मै बांध जाता !