इन हवाओं से अब दोस्ती हो गई थी |
लगता है दिए की उम्र लंबी हो गई थी |
अभी तो इसमें कई और रंग बचे थे |
तेरी तस्वीर कबकी पूरी हो चुकी थी |
मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |
जबसे जाना था मंजिल का पता मैंने |
मेरी तो रफ़्तार ही धीमी हो गई थी |
बहुत बार चाहा था फिर से हंसना मैंने |
पर उदासी तब और गहरी हो गई थी |
बहुत ही करीब चली गई थी चाँद के मैं |
उसकी रौशनी में थोड़ी धुंदली हो गई थी |
चल तो रही थी अब साथ - साथ उसके |
पर अपने परिचय से अंजान हो गई थी |
बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |