हुस्न

                      हुस्न
हुस्न  को संवरनें की जरूरत क्या है |
सादगी भी तो कयामत की नज़र रखती है |
हुस्न जब - जब बेपर्दा होता है |
ज़माने से हर बार रुसवा होता है |
सुना है आजकल हुस्न का अंदाज़
कुछ  बदला - बदला सा लगता है |
पहले हुस्न परदे की ओट में रहा करता था  |
आज  सरे राह नज़रे कर्म  हुआ करता है |
पहले उस तक पहुंचने  को लोग तरसते थे |
अब न चाह कर भी वो हर राह से गुजरता है | 
चिलमन में छुपे  हुस्न का अंदाज़  ही  निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अब न वो हुस्न है न चाहने वालों का अंदाज़ बाकि है |
अब तो बदला - बदला सा ये सारा जहां नज़र आता है |
चाहने वालों ने भी अपना अंदाज़  कुछ बदला है |
अब वो भी सरे राह का नज़ारा देखते फिरते हैं |
जब हुस्न बेपरवाह है तो...
चाहने वालों की इसमें  क्या  खता हैं ?
फिर उनके सर  दिया गया इल्ज़ाम ...
उनकों बे मतलब में  दी गई एक सज़ा है |
खुद को महफूज एसे रखो की चाहने वाला भी 
तुम्हारे हुस्न पर रशक खाने लगे |
आपके हुस्न पर  वो खुबसूरत गज़ल बनाने लगे |
आप भी उसमें झूम कर खुद को जान सको |
अपनी खूबसूरती के  दो लफ्ज़ तुम भी उसमें बोल सको |

10 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बहुत ही उम्दा

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah ... sau fisadi baat

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut jald aisa lagne laga jaise aapke shabd bolte hon...:)
badhai!

Rajeysha ने कहा…

नहीं नहीं ऐसी बातें दूसरों को करने देनी चाहि‍ये।

Minakshi Pant ने कहा…

shukriya doston

राहुल सिंह ने कहा…

दो लफ्ज़- ''बहुत खूब''

Arun M ........अ. कु. मिश्र ने कहा…

चिलमन में छुपे हुस्न का अंदाज़ ही निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अच्छी पंक्ति लगी. एक फ़िल्मी गीत का टुकड़ा याद आ रहा है...नज़रें न होतीं नज़ारा न होता तो दुनिया में हसीनों का गुज़ारा न होता.
बहुत बढ़िया लिखा आपने.लगे रहिये मुन्ना भाई.

POOJA... ने कहा…

waah... itna sach... parda utha diya... nazara dikha diya...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सहजता का आकर्षण अप्रतिम है।