तितली सा मन बावरा , उड़ने लगा आकाश ,
सतरंगी सपने बुने , मोरपंखी सी चाह |
आमंत्रित करने लगे , फिर से नये गुनाह ,
सोंधी सोंधी हर सुबह , भीनी भीनी शाम |
महकी सी है सुबह और बहकी - बहकी धूप ,
दर्पण मै न समां रहे , ये रंग - बिरंगे रूप |
जाने फिर कयूँ धुप से , हुए गुलाबी गाल ,
रही खनकती चूड़िया , रही लरजती रात |
आँखे खिड़की पर टिके , दरवाजे पर कान ,
इस विरह की रात का , अब तो करो निदान |
सिमटी सी नादां कली, आई गाँव से खूब ,
शहर मै खोजती फिरती , अपने सईयाँ का प्यार |
आँखों मै छुपने लगे , विरह गीतों के गान ,
अन्दर कुछ न बोलती , बाहर हास - परिहास |
12 टिप्पणियां:
भाव अच्छे हैं.
तितली सा मन बावरा , उड़ने लगा आकाश ,
सतरंगी सपने बुने , मोरपंखी सी चाह |
मन के उत्साह को व्यक्त करती अद्भुत पंक्तियाँ।
sabhi panktiyan . ek se badkar ek bhav ati sundar
man....jar jagat ka ek adbhut shabd...jiska koi thaah nahi...jo kahin nahi sama sakta...:)
bahut pyare se sabd meenakshi:)
उड़न जी , प्रवीन जी , संजय जी और मुकेश जी का मैं तहे दिल से शुक्रिया करती हूँ मैं आपके यहाँ जाऊ न जाऊ पर आपका हमारे ब्लॉग में निस्वार्थ भाव से आने का सिलसिला कभी नहीं थमा मैं आपकी आभारी हूँ दोस्तों आप सबका अपना समय निकाल कर यहाँ आते रहने ने मुझे आज शुक्रिया अदा करने पर विवश कर ही दिया सच ही कहा है की किसी के भी दिल को जीतने के लिए दो बोल प्यार के ही बहुत हैं |
शुक्रिया दोस्तों |
तितली जैसी सुन्दर रचना। बधाई।
shukriya dost
मन की सतरंगी भावनाओं को
बहुत सुन्दर शब्द दिए आपने ....
कविता ,
मन-भावन है .
इस पंक्ति 'बाहर से कुछ न बोलती, बाहर हास-परिहास|' में बाहर शब्द दो बार आया है, वह एक बार भीतर या अंदर हो सकता है क्या, कृपया विचार करके देखें.
सुन्दर रचना, बधाई. रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
दानिश जी राहुल जी और कुंवर जी आप सभी का भी बहुत - बहुत शुक्रिया दोस्त |
राहुल जी हमें आपका सुझाव बहुत अच्छा लगा आशा करती हूँ आगे भी आप मेरा एसे ही मार्ग दर्शन करते रहेंगे शुक्रिया |
अच्छे भाव हैं। आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ। पिछली कुछ पोस्ट भी पढ़ीं। अच्छी लगीं।
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