जिंदगी की भीड़ में , याद आतें हैं वो पल
वो छोटा सा घर , वो प्यारा सा घर
खुशियों से हरदम , भरा था जो कल
वो खुला आसमान , वो ठंडी हवाएं
हर पल मुझे पुकारे , वो प्यारा मेरा घर
सबकी बातों से दूर , माँ के आँचल से दूर
न जाने क्यु सताएं , वो फुर्सत के पल
अक्सर कई बुलंदियों को , छुं तो लेते हैं हम
पर न भूल पाते हैं , हम वो हसीन कल
वो माँ - बाबा की बातें , वो हँसना - हँसाना
भाई - बहन का हरदम लड़ना - लड़ाना
फिर पास आकार , एक दूजे को मनाना
फिर कैसे भूल जाएँ हम बिता हुआ कल
जिसमें आज भी बसती है बातें हमारी
यादों के साये में , लिपटी प्यारी सौगातें
यादें कब - कहाँ किसका पीछा छोडती हैं
वो तो हरपल बस हमारे साथ चलती हैं
इन्सान के सफ़र की यादें ही तो हैं राहबर
जो बार - बार ये कहती है ...
मैं आज भी वहीँ हूँ तुम आओ न मेरे घर |
में आज भी वहीँ हूँ ... तुम आओ न मेरे घर |
में आज भी वहीँ हूँ ... तुम आओ न मेरे घर |
4 टिप्पणियां:
यादें जीवन की अमूल्य निधि हैं।
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ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
सुन्दर भावपूर्ण गीत...
छोटी छोटी बातें में बसी बड़ी खुशियाँ।
दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के पल ...
सुन्दर !
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