बस थोडा सा प्यार दो


चलो आज फिर उनके  कुचे में जाएँ |
उन्हें  हम बुलाएँ उन्हें हम हंसाये |
किस कदर  दुनियां से दूर रहते हैं ये सब |
फिर भी कहते हैं यहाँ ... मेरे ही तो  हैं सब |
क्यु इनकी दुनियां इनसे इतनी खफा है |
सब हैं इनके फिर भी इनसे जुदा हैं |
यही दस्तूर हैं शायद घर बनाने वालों का |
बनाने वाला हमेशा बरामदों में खड़ा है |
इनकी हिम्मत ही इनके जीने का हैं मकसद |
वर्ना दिल तो इनका कबका छलनी हुआ है |
क्यु दर्द देतें हैं अपने अपनों को इस कदर |
क्या कोई कभी इनसे हुई कुछ खता है ?
फिर भी है जन्मदाता इन्हें क्यु सताना |
इनकी छोटी भूल पर भी इन्हें गले तुम लगाना |
इनकी उम्र में अपने बचपन को देखो |
खुद को माँ - बाप इनकों बच्चा ही  तुम समझो |
बहुत अकेले हैं ये इन्हें कुछ  तो संभालो |
इनके दर्द में  मलहम आज फिर से लगाओ |
खुद थोडा झुक कर इन्हें उपर उठाओ |
इनके आशीर्वाद से अपना जीवन संवारों |

5 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sundar rachna

Vijuy Ronjan ने कहा…

Bahut acchi rachna Minakshi ji.Sachmuch dusron ke kooche mein jakar unki zindgi jeena hi jeena hai.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी सुन्दर रचना।

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत अकेले हैं ये इन्हें कुछ तो संभालो |
इनके दर्द में मलहम आज फिर से लगाओ |
खुद थोडा झुक कर इन्हें उपर उठाओ |
इनके आशीर्वाद से अपना जीवन संवारों |

बहुत संवेदनशील चिंतन ...
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति .

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत खूबसूरत भाव...काश आज के इकाई परिवार के सभी माता पिता अपने बच्चों को कम से कम महीने में एक बार वृद्धाश्रम ले जाया करें.. अगर दादा-दादी और नाना-नानी हैं तो उनसे मिलवाएँ..सच है कि उन्हें बस थोड़ा सा प्यार ही चाहिए..