आ उड़ा ले चल पवन
फिर मुझे उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
उसका वो स्पर्श दिलवाने |
वो रहती है जहाँ
उस देश का पता बतलाने |
मैं हो जाऊ फना
सिर्फ उस एक झलक के बहाने |
अहसास है मुझे
उसके हर अलग सी छुवन का |
कभी काली , कभी दुर्गा
कभी सरस्वती रूप था उसका |
आज भी वो मेरे
ख्यालों कि नगरी में है बसती |
सुख - दुःख में
हर हाल में मेरे साथ है रहती |
आँचल की छांव में
उसके एक मीठा सा सुकून है |
उसका हर स्पंदन भरता
मुझमे बेमिसाल जूनून है |
आ ले चल पवन
मुझे फिर उस गलियारे |
माँ कहते हैं जिसे
बस उसका दीदार करवाने |
12 टिप्पणियां:
मीठे से रिश्ते पर प्यारी सी अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर..
सादर.
आज भी वो मेरे
हरपल ख्यालों में है बसती |
सुख - दुःख में
हर हाल में मेरे साथ है रहती
कभी लगा ही नहीं की वो नहीं है, वो तो हमारी आत्मा में बसती है, हम सिर्फ परछाई हैं उसकी... बहुत अच्छे भाव...
माँ पर लिखा गया जब भी पढ़ती हूँ मन को छू जाते हैं उसके भाव ... आभार इस बेहतरीन अभिवयक्ति के लिए ।
सुंदर भाव भरी रचना
बहुत ही सुन्दर भाव| धन्यवाद।
सहज अर्थों में maa की परिभाषा aur .. usse bichudne ka gam
गहरे संबंध की सार्थक प्रस्तुति..
बहुत प्यारी रचना !
आभार .....
maa par likhi gai rachna jaise har maa aur santan ki abhivyakti ho. samvedanpurn rachna ke liye badhai.
बहूत सुंदर,,,
ममतामयी ,,रचना...
सुंदर अभिव्यक्ती....
माँ के लिए कोई भी व्याख्या पर्याप्त नहीं है ..उसका किरदार तो अनंत है ..असीम है !
माँ तुम ममता प्रेममयी हो, स्नेहमयी हो। सुंदर, मन के छू लेने वाली कविता।
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