शायद जुर्म मुझसे फक्त , इतना सा हो गया
गरीब माँ की कोख में , मेरा जन्म था हो गया
अरमानों का काफिला , तभी से था ठहर गया
शिकायतों के दौर का , सिलसिला भी थम गया
क्या अब खुदा भी , अमीरों का गुलाम हो गया ?
या फरियादों में भी , अब कोई टैक्स है लग गया
गरीबी मेरी जिंदगी का , हिस्सा बन गया
सरपट भागती दुनिया से , मैं पिछड गया
घर द्वार से मेरा , नामों निशाँ है मिट गया
रिश्तों से भी मैं , दूर होता चला गया
इंसानी फितरत से , जब मैं बेजार हो गया
अब जाकर फिर मैं , खुद में ही सिमट गया
जब मिलेगा वो , तो उससे पूछुंगी फुर्सत से
बता बीते जन्म में , मुझसे ऐसा क्या पाप हो गया ?
13 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति आदरेया -
शुभकामनायें ||
ek dard aisa bhi ...uff
बहुत सुंदर
क्या कहूं,
आह....
मार्मिक रचना...
अनु
इंसानी फितरत से , जब मैं बेजार हो गया
अब जाकर फिर मैं , खुद में ही सिमट गया
जब मिलेगा वो , तो उससे पूछुंगी फुर्सत से
बता बीते जन्म में , मुझसे ऐसा क्या पाप हो गया ?
बहुत ही खुबसूरत भाव पूर्ण रचना मन को छूती
मार्मिक-
शुभकामनायें आदरेया ।।
ताने हों या इल्तिजा, नहीं पड़ रहा फर्क ।
पत्थर के दिल हो चुके, सह जाता सब जर्क ।
सह जाता सब जर्क, नर्क बन गई जिंदगी ।
सुनते नहिं भगवान्, व्यर्थ में करे बंदगी ।
सत्ता आँखे मूंद, बनाती रही बहाने ।
चूस रक्त की बूंद, मार के मारे ताने ।।
बहुत गहरे विचार अभिव्यक्त किये है |
आशा
मन को छूती प्रस्तुति
मार्मिक..... :(
~सादर!!!
मार्मिक..... :(
~सादर!!!
बहुत मार्मिक...........................
मार्मिक स्थितियाँ..
बहुत मार्मिक रचना, शुभकामनाएँ.
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