मंजिल अभी दूर
कितनी प्यारी कितनी सुकोमल
छूने भर से खो देती रौनक ..........
सहमी - सहमी सी रहती है !
मुहँ से कुछ न वो कहती है !
न जाने केसी हवा चली .......
उसके संग ही वो बह निकली !
फिर कोमल कोमल पंखो से
साथ सफ़र वो ....करने लगी !
कुच्छ शरमाई कुच्छ सकुचाई
दुनियां कि नज़रों से बचने .... लगी !
पाना तो सब कुछ चाहती है !
पर पाने से घबराती है !
फिर हिम्मत नया जुटाती है !
क़दमों से कदम मिलाती है !
फिर आगे वो बढ जाती है !
ये नन्हा सा प्रयास ही है !
जग को पाने कि आस ही है !
देखो ये दुनियां .............
कब तक सहती है !
नारी कि इज्ज़त करती है ?
उसका संघर्ष निराला है !
कुछ पाने कि अभिलाषा है !
दिल नित नये ख्वाब सजाता है !
पर पूरा करने से घबराता है !
आप सबके साथ कि गुजारिश है !
इक छोटे से दिल कि ये ख्वाइश है !
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10 टिप्पणियां:
:)...nari ki abhilasha....kya kahne hai....
nari ki komal hriday se nikalta hua ek bhaw purn abhivyakti...!!
waise mujhe lagta hai aapki abhilasha puri ho chuki hai!
bahut sundar rachna
abhilaasha to fir abhilaasha hai, jaroor poori hogi
जितनी सुन्दर सोच उनता ही सुन्दर लेखन. बहुत-बहुत बधाई. आप मेरे ब्लॉग पर, बहुत अच्छा लगा. उस पर टिपण्णी भी की लगा लगा मेरी गुफ्तगू सफल हो गई. हौंसला अफजाई के लिए
धन्यवाद. आशा रहेगी आप समय-समय पर मेरी गुफ्तगू में शामिल होते रहेंगे.
वाह... कभी-कभी कुछ पढ़ते-पढ़ते लगता है कि अरे! ये ख़त्म क्यूं हो गयी...???
ऐसी पंक्तियाँ चलते रहने चाहिए... बहती रहना चाहिए नदिया की तरह...
आज शायद पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है... परन्तु बहुत आनंद प्राप्त हुआ... शुक्रिया...
nari ki abhilasha..
sundar vichar...
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