इस कदर पहले अपने नाम से |
अब तो बुलाते है लोग
रोज़ मुझे नये नाम से |
जिधर जाऊं प्यार ही प्यार
बरसता है |
ये सब तो दे गये हैं ...
मेरे ही अपने चाहने वाले |
जो भी कहते हैं बस फूल ही
तो बरसता है |
मुझे तो कर गये वो ...
इस कदर गुलाम अपना |
अब कैसे ये एहसान
मैं चुका पाऊँगी |
क्युकी अब बना गये हैं
मुझे कर्जदार अपना |
कितना प्यार है उनकी
मिट्ठी - मिट्ठी बातों में |
अब तो बना गये है मुझे
खुद वो अपने ही जैसा |
थोड़े से काम से ही ...
कहते हैं सब माशा अल्हा
माशा अल्हा , माशा अल्हा |
10 टिप्पणियां:
आप वाकिफ क्यूँ न थी ...
इस कदर पहले अपने नाम से ?
गुणों की विविधता इतनी आपमें
इसी लिए पुकारते होंगे लोग
आपको विविध नाम से !!
.
.
शुभ कामनाएं !!
kyaa khub likhaa he mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
यह आपकी... भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति और हर शब्द में गहराई..... बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति का ही परिणाम है....
कि लोग पुकारते होंगे आपको विविध नामों से....
मीनाक्षी जी,
एक और खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
अपना नाम बड़ा ही सुना सुनाया लगता है।
बहुत अच्छा
अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
माशा अल्हा , माशा अल्ह-bahut khoob .Minakshi ji hamare blog ''ye blog achchha laga ''par aakar utsahvardhan karen .aabhar .
[http://yeblogachchhalaga.blogspot.com ]
मीनाक्षी जी,
एक और खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
subhan-allah, subhan-allah
खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
बेहतरीन प्रस्तुति !
jab log khush hote hain aur uska jariya koi khas hota hai..beshak wo anjana sa dost ho to aise hi naye naye naam milte jate hain...:)
badhai dost...vividh naamo ke liye:)
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