ख्वाबों की ताबीर

सुना है उसके शहर की ...
बात बड़ी निराली है ,
सुना है ढलते सूरज ने ...
कई दास्ताँ कह डाली है ,
सुना है जुगनुओं ने ...
कई बारात निकाली है ,
सुना है हर रात वहां ...
ईद और दिवाली है ,
सुना है अल्फ़ाज़ लबों से ...
फूलों की तरह झरते हैं ,
सुना है उसके शहर में
पत्ते भी गले मिलते हैं ,
अब उसके शहर में जाएँ
तो क्या पूछकर जाएँ ?
कहाँ , कैसे गुजारेंगें रात ...
ये बात किस - किसको बताये ,
चलो सितारों आज ही सफर पे निकलते हैं ,
जहन में कैद ख़्वाब की ताबीर करके देखते हैं ।
सुना है लोग उसे जी भरके देखते है ,
हम भी उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं ।

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (14-04-2015) को "सब से सुंदर क्या है जग में" {चर्चा - 1947} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Minakshi Pant ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री जी ।

Minakshi Pant ने कहा…

शुक्रिया ऋषभ शुक्ला जी ।

Tayal meet Kavita sansar ने कहा…

सुन्दर रचना

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर ।

बेनामी ने कहा…

प्रशंसनीय

https://www.timetableresults.com/allahabad-university-ba-1st-year-result/ ने कहा…

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