माँ ... कितना एहसास है इसमें ,
नाम से ही सिरहन हो जाती है |
कैसे भूले हम उस माँ को
जिसने हमें बनाया है |
अपना लहू पिला - पिला कर ...
ये मानुष तन दिलवाया है |
उसके प्यारे से स्पंदन ने
हमको जीना सिखलाया है |
धुप - छाँव के एहसासों से
हमको अवगत करवाया है |
हम थककर जब रुक जाते हैं |
वो बढकर राह दिखाती है |
दुनियां के सारे रिश्तों से
हमको परिचित करवाती है |
जब कोई साथ न रहता है |
वो साया बन साथ निभाती है |
खुद सारे दुख अपने संग ले जाकर
हमें सुखी कर जाती है |
बच्चों की खातिर वो...
दुर्गा - काली भी बन जाती है |
दुर्गा - काली भी बन जाती है |
बच्चों के चेहरे में ख़ुशी देख ,
अपना जीवन सफल बनाती है |
उसके जैसा रिश्ता अब तक
दुनियां में न बन पाया है |
कितना भी कोई जतन करले
उसके एहसानों से उपर न उठ पाया है |
ऊपर वाले ने भी सोच - समझ कर
हमको प्यारी माँ का उपहार दिलाया है |
13 टिप्पणियां:
बहुत सही लिखा है आपने.
सादर
bhut khubsurat kavita... happy motherday...
shukriya dosto
सुन्दर रचना..
मातृदिवस की शुभकामनाएँ..
सादर
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
प्यारी माँ की प्यार भरी स्मृति।
माँ से अच्छा माँ प्यारा कोई नहीं.... हैप्पी मदर्स डे
अपना लहू पिला - पिला कर ... ये मानुष तन दिलवाया है | उसके प्यारे से स्पंदन ने हमको जीना सिखलाया है | धुप - छाँव के एहसासों से हमको अवगत करवाया है | हम थककर जब रुक जाते हैं | वो बढकर राह दिखाती है | दुनियां के सारे रिश्तों से हमको परिचित करवाती है | जब कोई साथ न रहता है | वो साया बन साथ निभाती है | खुद सारे दुख अपने संग ले जाकर हमें सुखी कर जाती है |
सच ही तो कह रहे आप....पर माँ के बाद ही माँ की कमी ज्यादा खलती है जब तक अम्मा जिन्दा थी कभी उनकी महत्ता का हसास ही नहीं हुआ...आदत सी थी उनकी कभी लगा ही नहीं की वो और मैं अलग हैं ...आज जब वो नहीं हैं तो लगता है सच में वो और मैं अलग नहीं थे उनके साथ ही चला गया...मेरा अपनापन भी....अब कोई नहीं है...अब तो बस इस भीड़ में अकेला ही हूँ....
मिनाक्षी जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ...माफ़ी मांगता हूँ इतने विलम्ब के लिए...सजा भी देंगी तो मंजूर है...आखिर हम मित्र होने के बाद पहली बार यहाँ मिल रहे हैं.
बहुत सुंदर लिखा है आपने मीनाक्षीजी ..... माँ सच माँ ही होती है......सभी माताओं को शुभकामनायें इस खास दिन की....
बहुत सुन्दर आलेख| मातृदिवस की शुभकामनाएँ|
sundr kvita bdhai aur shubhkamnayen
सच माँ सच माँ ही होती है.... बहुत सुन्दर रचना... मातृदिवस की शुभकामनाएँ..मीनाक्षी जी
माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?
बहुत सुंदर..........................
शुभकामनाएँ......सदा के लिए.
अनु
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