बहुत दूर क्षितिज के उस पार तक
खुद को निहारा |
खुद को निहारा |
बहुत दूर ... खुद से उसे बहुत दूर पाया |
अभी तो सफ़र शुरू हुआ है
अभी तो सफ़र शुरू हुआ है
न जाने कितने और पड़ाव होंगे ?
अभी से कैसे जान जाती
मंजिल का पता मैं ?
पर दिल है न ...
कहाँ ठहरता है खुद के पहलूँ में |
ये भी तो बेवफा है सबकी तरह |
पर खुद के लक्ष्य की चाह |
उसे पाने की सुलगती आग |
थक के रुक जाऊ...एसा हो नहीं सकता |
उसे पकड़ न पाऊ ...एसा होने नहीं दूंगी |
ये पुकार मेरी नहीं उस आह की है
जिनकी निगाहें अब तक
रास्ता तक - तक के थक गई है |
जिनकी आहें बेबस हैं हमारी ही तरह |
जिनकी आँखों में अब भी कई सपने हैं |
जो किसी के दीदार में
अब भी तरसते है |
न जाने किसकी धड़कन की
और कितनी घड़ियाँ बची होंगी |
दिल तो चाहता है जाके उन्हें थाम लूँ |
कुछ ऐसा करूँ की ...
उनके एहसास को मैं बाँट लूँ |
बिना कुछ करें ये तो सिर्फ सपना है |
मेरी सोच और कलम का करिश्मा है |
दिल चाहता है ये कि ...
मैं भी किसी एक की मसीहा बन जाऊं |
उनके दर्द को थोडा सा ही कम कर पाऊं |
उनके दर्द को थोडा सा ही कम कर पाऊं |
करुँगी शुक्रिया खुदा का ...
जो ऐसा कभी मैं कर पाई |
जो ऐसा कभी मैं कर पाई |
बहुत दर्द है इस सारे जहां में
थोड़ी सी ख़ुशी देकर उनकी आँखों में
थोड़ी सी ख़ुशी देकर उनकी आँखों में
जो ख़ुशी ही मैं भर आई |
10 टिप्पणियां:
दिल चाहता है ये कि ...
मैं भी किसी एक की मसीहा बन पाऊं |
करुँगी शुक्रिया खुदा का ...
ऐसा जो मैं भी कभी कर पाऊं |
बहुत दर्द है इस सारे जहान में
काश थोडा सा मैं भी , इसे कम कर पाऊं |
isse pyaari baat aur kya hogi
vakai main dard bahut kuchh kahta hai
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार।
बहुत दर्द है इस सारे जहान में
काश थोडा सा मैं भी , इसे कम कर पाऊं |
खूबसूरत सोच,शानदार अभिव्यक्ति.
बहुत बहुत आभार.
बहुत उम्दा एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
दिल चाहता है ये कि ...
मैं भी किसी एक की मसीहा बन पाऊं |
Great expressions.
बहुत दर्द है इस सारे जहान में
काश थोडा सा मैं भी , इसे कम कर पाऊं |such me kabhi kabhi hame lagta hai ki shayad aisa ho jata... bhut sunder rachna aur vichar hai apke...
'बहुत दर्द है इस जहान में
काश थोडा सा मैं भी, इसे कम कर पाऊँ '
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इंसानियत की कितनी तड़फ और सेवा की बेचैनी भरी है रचना में !
'वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे'....की पवित्र भावना से परिपूर्ण , सुन्दर रचना
आदरणीय मीनाक्षी पन्त जी..
नमस्कार
न जाने किसकी धड़कन की और कितनी घड़ियाँ बची होंगी | दिल तो चाहता है जाके उन्हें थाम लूँ |
....बहुत संवेदनशील प्रस्तुति
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