दोषी कौन



ख़बरे कहती हैं हमसे की ? 
युवावर्ग  बिगड़ रहा  है | 
कितना आसां है ... यह कहना कि 
युवापीढ़ी बिगड़ रही है |
हाथ पकड़ कर चलना तो , 
उसने हमसे ही सीखा  है |
घर में  रह कर कदम बढाना , 
उसने हमसे  जाना है |
वो तो सिर्फ हमारे ही  ,
नक़्शे कदम पर चलता  है |
उसको दोषी कैसे कह दे , 
वो  हमारे  संस्कार अपनाता है |
हमसे  ही तो कुछ सीख  कर वो ... 
आगे कदम बढ़ाता है |
कुछ भी कर पाने की हिम्मत ... 
वो हमसे  लेकर जाता है |
फिर  जब अच्छी आदतों की ...
 बात जुबाँ पे हमारी  आती है |
वो सब  हमारी विरासत , 
और उनकी गलती हो जाती है |
जब ऊँगली पकड़ कर चलना , 
हमने उन्हें सिखाया  है तो ,
हाथ पकड़ कर  बढना भी तो , 
हम ही उन्हें सिखायेंगे |
क्युकी ... जिन्दगी तो एक  सफ़र है  ...
हर  उम्र में सहारे खोजती ही  रहती  है |
फिर युवा वर्ग है दोषी ?
 हम कैसे ऐसे  कह सकते हैं |
वो तो सिर्फ सही राह  की तलाश में
हरपल  आगे  बढता  है |
थामे रहेंगे हाथ अगर  तो ...
 वो कैसे दोषी हो सकता है |

16 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

doshi to haalaat hain, doshi paristhitiyan hain

Rahul Singh ने कहा…

वाजिब नजरिया.

कुमार संतोष ने कहा…

सही कहा थोडा दोष तो अपना भी है, कुछ कमियां हम में भी हैं !

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

Sach kahaa yuva ko badnaam kyo kare ..unhone hmse hi sikha haae

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लहरें उठें तो तटों का क्या दोष?

मनोज कुमार ने कहा…

सही प्रश्न। हमें सोचना होगा कि दोषी कौन!

Sadhana Vaid ने कहा…

बिलकुल सच कह रही हैं आप ! जब श्रेष्ठ का श्रेय लेना चाहती है बुज़ुर्ग पीढ़ी तो जो गलत है उसकी जिम्मेदारी से मुँह क्यों चुराना चाहती है ! सुन्दर एवं सार्थक रचना ! बधाई !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति

vandana gupta ने कहा…

सार्थक नज़रिया………सुन्दर अभिव्यक्ति।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक सोच..सुन्दर प्रस्तुति..

M VERMA ने कहा…

यकीनन इस नजरिये को भी तवज्जो देनी चाहिये

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जब ऊँगली पकड़ कर चलना ,
हमने उन्हें सिखाया है तो ,
हाथ पकड़ कर बढना भी तो ,
हम ही उन्हें सिखायेंगे |... bilkul

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपका कहना सही है ... पर फिर भी समाज और आज का मीडीया .. आज का माहौल .... बहुत कुछ ऐसा है की आप जितना भी चाहो आज की पीडी को साझाना आसान नही ....

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बिल्कुल ठीक फरमाया, इस ओर हमें ही सोचना चाहिए और फिर देखें की हम कितने दोषी हैं? बड़ों से दूर रहने की ताकीद तो हमसे ही पाई है, बड़ों की बातों को हवा में उड़ना भी हम से ही सीखा है. हम झांक ले अपने गिरेबान में तो खुद पर ही शर्म आ जाएगी. बहुत कुछ बच्चे घर से ही सीखते हैं. घर पहली पाठशाला और माँ प्रथम शिक्षक होती है. अपवाद इसके भी होते हैं लेकिन सिर्फ अपवाद.

रचना दीक्षित ने कहा…

सही प्रश्न. विचार करने योग्य.

बहुत अच्छी प्रस्तुति.

Minakshi Pant ने कहा…

आज इतने विचारों से अवगत होकर बहुत अच्छा लगा जानने को मिला की हम कितने सही हैं और अपनी सोच को और कितना और विस्तृत करना है आप सभी का बहुत - बहुत शुक्रिया |