आओ गुंचे - गुंचे में आज
फिर से फूल हम खिला दें |
लायें ऐसी क्रांति कि हर तरफ
आग हम लगा दें |
उठ खड़े हो जाओ जो इस देश
का दिल में अरमान हो |
बच्चे , बूढ़े और नारी का भी
इसमें योगदान हो |
देश में फैले इस गर्द को
गर हम हटाना है चाहते ,
तो सिर्फ शोर ही काफी नहीं
इसे तो अंजाम तक पहुंचाना है |
हाथ से हाथ थामकर जो हम
आगे बढते जायेंगे |
रोक ले राह में कोई हमें
तो उसे भी अंजाम तक पहुचायेंगे |
देश में रहकर जब देश में
पल रहे गद्दार हों ,
तो कैसे करदे माफ , जो अपने ही
वतन कि ले रहा आन हो |
आओ आज ही हम
अपने दिलों में ये ठान लें ,
न लेंगे हम चैन जबतक
देश में गद्दार हों |
सीखा दो उनको भी हुनर
जिससे देश का नाम न बदनाम हो |
वो भी हम संग ये कह उठे कि ...
मेरा देश सदा महान हो |
जय हिंद !
13 टिप्पणियां:
I appreciate for your beautiful poem...nice... Excellent....Minakshi ji
अच्छी प्रस्तुति
अच्छी कविता है। सोचपूर्ण
बहुत बहुत शुभकामनाएं
अच्छी प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति आभार .......
bahut acchi soch hai aapki agr aap jaise soch sabki ho jaye to duniya pata nhi kahan hogi minakshi ji
Brilliant post..
Thoughtful and with strong emotions !!
सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति....
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
एक क्रांति और जरुरी हैं.
खूबसूरत एवं सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
bahut badhiya likha hai aapne ,jai hind .
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