बदला - बदला सा इंसान



आँगन की खोज थी मकान मिल गया |
नया शहर तो बिन आँगन के बन गया |

देखो घर कितनी जल्दी है सिमट गया |
रिश्तों की गर्माहट को भी न सह सका |

झरोखों से अब कोई यहाँ झांकता  नहीं |
झत जैसी चीज़ का तो नामोनिशां नहीं |

अपने - अपने जेल में सब कैद हुए है ऐसे |
अपने गुनाह की सजा सब मंजूर हो जैसे |

बाहर की दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं |
घर में रहता है कौन इसकी भी खबर नहीं |

तमाशाइयों सी जिंदगी है बनके रह गई |
सबकी आपस में ही है जोरदार ठन गई |

अब किसीसे किसीको न कोई गिला रहा |
जीने का नया सिलसिला जो है चल पडा |

अब इंतहा भी एक हद से है गुजरने लगी |
लो तारीखे अंत अब करीब  है आने लगी |


17 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

आँगन की खोज थी मकान मिल गया |
नया शहर तो बिन आँगन के बन गया |खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना

vidya ने कहा…

बहुत अच्छी रचना...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जिसकी जो थी, चाह मिली है,
हर चाहों को राह मिली है,
कैसे यह सच झुठला दें हम,
हर नदिया की थाह मिली है।

Pallavi saxena ने कहा…

अब किसीसे किसीको न कोई गिला रहा |
जीने का नया सिलसिला जो है चल पडा |
अब इंतहा भी एक हद से है गुजरने लगी |
लो तारीखे अंत अब करीब है आने लगी |
वाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने आज के जीवन के सच को॥ शुभकामनायें समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/12/blog-post_12.html
http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_11.html

कुमार राधारमण ने कहा…

इसीलिए जगजीत सिंह की यह ग़ज़ल कि-
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

Rajput ने कहा…

अपने - अपने जेल में सब कैद हुए है ऐसे |
अपने गुनाह की सजा सब मंजूर हो जैसे

समझ नहीं आता इंसान इतना अकेला और अपने आप में सिमट क्यों रहा है .
अच्छी रचना के लिए शुभकामनायें .

मदन शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...आभार।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

sundar rachnaa!

Jyoti Mishra ने कहा…

true bohot badal gaya insaan..
loved the way u expressed in those verses :)

an awesome read !!

mridula pradhan ने कहा…

बाहर की दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं |
घर में रहता है कौन इसकी भी खबर नहीं theek bolin aap........

दिगम्बर नासवा ने कहा…

देखो घर कितनी जल्दी है सिमट गया
रिश्तों की गर्माहट को भी न सह सका ...

रिश्तों की गर्माहट रहे तो घर दुबारा भी बन जाते हैं ...
गहरी रचना है ...

Kailash Sharma ने कहा…

अब किसीसे किसीको न कोई गिला रहा |
जीने का नया सिलसिला जो है चल पडा |

...भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहूत सुन्दर

Kunwar Kusumesh ने कहा…

खूबसूरत भावो का समावेश्.

PK SHARMA ने कहा…

Bahut khoob please visit my blog