शामें गम अब और कटती नहीं है तेरे बिन |
बज़्म में विरानियाँ लगने लगी है तेरे बिन |
तन्हाइयों में भी अक्सर तेरा साथ है रहता |
ख्यालों में हरपल हलचल रहती है तेरे बिन |
मिलो फुर्सत से कि हम उदास हैं तेरे बिन |
नहीं कटती अब ये तन्हां सी रात तेरे बिन |
तेरे अहसास में अब पहली सी बात न रही |
जीवन जीना मुहाल फिर हुआ है तेरे बिन |
वक्त कि है साजिश हम तन्हां हैं तेरे बिन |
रिमझिम बारिश में भीगे अकेले तेरे बिन |
गुजरते हरपल में तेरी यादों का साथ लेकर |
राहे वफ़ा में कारवां संग चलते रहे तेरे बिन |
सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |
तन्हाइयों में भी अक्सर तेरा साथ है रहता |
ख्यालों में हरपल हलचल रहती है तेरे बिन |
मिलो फुर्सत से कि हम उदास हैं तेरे बिन |
नहीं कटती अब ये तन्हां सी रात तेरे बिन |
तेरे अहसास में अब पहली सी बात न रही |
जीवन जीना मुहाल फिर हुआ है तेरे बिन |
वक्त कि है साजिश हम तन्हां हैं तेरे बिन |
रिमझिम बारिश में भीगे अकेले तेरे बिन |
गुजरते हरपल में तेरी यादों का साथ लेकर |
राहे वफ़ा में कारवां संग चलते रहे तेरे बिन |
सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |
18 टिप्पणियां:
bhtrin gzl bhtrin jzbaat bhtrin alfaaz badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
तेरे बिन...तेरे बिन...तेरे बिन...
आपकी प्रस्तुति लाजबाब है मीनाक्षी जी.
पर मेरे ब्लॉग से आप ने क्यूँ मुँह मोड़ा है जी.
मेरा ब्लॉग बहुत उदास है तेरे बिन.
बहुत बहुत बढ़िया....
सादर..
सुंदर रचना ...
सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन...
तेरे बिन... इतनी सुन्दर रचना जवाब नहीं मीनाक्षी जी...
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
प्रेम फुहार में नहाती सी कविता..
आज 26/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
tere bin...sundar abhivyakti.....
खुबसूरत एहसासात...
सादर बधाई.
सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |
WAH KYA KHOOB LIKHA HAI APNE ...BADHAI MEENAXI JI.
सोचा फिर से एक अहसास जगाएं तेरे बिन |
ख्वाइशें हो बेशुमार हम तन्हां जिए तेरे बिन |
हर उठती आरजू में सिर्फ तू ही तू शरीक हो |
बंद आँखों में सपने न सजा सके तेरे बिन |
WAH KYA KHOOB LIKHA HAI APNE ...BADHAI MEENAXI JI.
लाजबाब प्रस्तुति
sundar
आपकी प्रस्तुति लाजबाब है मीनाक्षी जी.सादर..
बहुत भीगी-भीगी सी रचना मीनाक्षी जी ! अति सुन्दर !
मेरे सभी मित्रों का मैं हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ आप सभी का बहुत - बहुत शुक्रिया |
शामें गम अब और कटती नहीं है तेरे बिन |
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