खबर पढ़ी थी मैंने
वो मर गया ...
फांसी लगाई थी उसने
पर लोग कहते थे
कुछ परेशान सा था वो
बहुत गलत किया उसने
साबित भी हो गया
कि ये आत्महत्या थी
और कानून कि नज़र में
ये एक जुर्म है
तो क्या इसका
जिम्मेदार वो खुद है ?
खुशी , दर्द , छटपटाहट
ये सब अपने बस में कहाँ ?
मजदूरो को कारखानों में
काम न मिलना |
किसानों को उनकी उपज का
सही दाम न मिलना |
बुनकर का करघा
हथिया लेना |
क्या इन सब में
किसी कि भी साझेदारी नहीं ?
क्या ये बिना हथियार के
दिए गए मौत के बराबर नहीं ?
फिर इस जुर्म का
वो अकेला भागीदार ?
सवाल तो और भी हैं
पर कहें तो किससे कहें हम
चलो आज फिर खामोश ही रहे हम |
13 टिप्पणियां:
दोषी तो व्यवस्था है .... सुंदर और संवेदनशील रचना
दोषी तो व्यवस्था ही होगी तब तो..
नहीं है इस जुर्म का वो अकेला भागीदार...
लेकिन सजा अकेला भुगतता है...
संवेदनशील रचना...
विचारणीय रचना है...
सुधार किये जाने चाहिए ..मगर कैसे ..ये सवाल है..
सादर.
सारे अपराधों की जड तो कुव्यवस्था ही है ..
सटीक प्रसतुति !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
बहुत महत्वपूर्ण सवाल है यह। काश, इसका जवाब भी इतना आसान होता।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
बहुत अच्छी पोस्ट
आशा
बहुत खूबसूरत ।
संवेदनशील रचना ||
आभार ।।
करघे उत्पादित करें, मारक सूती डोर ।
देख दुर्दशा मर्द की, बहते अँखियन लोर ।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
सभी सम्मानित मित्रों का ह्रदय से आभार |
मीनाक्षी पंत ने अत्यंत संवेदनशील रचना प्रस्तुत की है जो गहराई से सोचने पर विवश कर देती है।
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