उफ़ !
और कितना लहू पिओगे |
वैसे आदमखोर ...
पहले तो न थे तुम |
कच्ची - पक्की कंटीली राहों से
अक्सर गुजरी हूँ मैं ,
पर इस तरह का खौफ
पहले कभी , जहन में न था |
अब तो राहों में , चलने से
डरने लगी हूँ मैं |
घर से कोई भी निकले
खुदा की बंदगी करने लगी हूँ मैं |
कितनी ख़ामोशी से ...वाहनों को पलट
तुम इंसान निगल जाते हो |
ऐसे दरिंदगी का खेल ...
तुम कैसे ,
किस अंदाज़ से खेल जाते हो ?
बिना दर्द , बिना अहसास के
ये सब करना इतना आंसा नहीं |
फिर किसके इशारे में
ये खौफनाक मंजर सजाते हो |
कातिल सा ये भयानक लफ्ज़
तुम पर अच्छा नहीं लगता |
इंसान न होकर भी ये इल्ज़ाम
सच कहूँ यकीं नहीं होता |
10 टिप्पणियां:
बेहद मार्मिक प्रस्तुति
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
dil ko choo gayi..............
भयानक सच.
राह पर अधिकार करते जा रहे हैं,
दर्द ही दर्द
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने . कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
मर्मस्पर्शी
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