प्रकृति का प्रकृति से जुडाव ,
नहीं अब नहीं रहा ये सब भाव ,
भीतर ही भीतर बड़ा कलरव है
घनी भीड़ में सिर्फ शोर ही शोर है
भीतर से असहज ....
बाहर सभ्य होने की दौड है
सब कुछ है सही , पर फिर भी व्यर्थ
इतना दर्द , सब तरफ मौन ही मौन है
इतना असर , पता नहीं वजह कौन ?
शब्द जितने सहज , मौन उतना कठिन
द्वेष , इर्षा , क्रोध , मद , मोह और मैं
हर तरफ सिर्फ इसी का है बोल
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...
गीत कैसे बने ...साज कोई कैसे छेड़े |
13 टिप्पणियां:
ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई,
"द्वेष, इर्षा, क्रोध, मद, मोह और मैं
हर तरफ सिर्फ इसी का है बोल"
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...
गीत कैसे बने ...साज कोई कैसे छेड़े |
बहुत ही दर्द से भरी भावनाएं ....
द्वेष , इर्षा , क्रोध , मद , मोह और मैं
हर तरफ सिर्फ इसी का है बोल
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...
गीत कैसे बने ...साज कोई कैसे छेड़े |
बेहतरीन,दर्दभरी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
recent post: वजूद,
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
मौन की स्तब्धता गहरा गयी है।
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...
गीत कैसे बने ...साज कोई कैसे छेड़े |
गहरे भाव. साहिर ने कहा था-
अश्कों में जो पाया है वो गीतों में दिया है. उसपर भी सुना है की जमाने को गिला है.
मौन की पीड़ादायक अभिव्यक्ति
दर्द की छटपटाहट के शोर से भरा मौन... गहन भाव... आभार
बहुत २ शुक्रिया दोस्तों |
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
जब जीवन ही रसहीन हो तो ...
गीत कैसे बने ...
साज कोई कैसे छेड़े...
हां , यह सच है !
आदरणीया मीनाक्षी पंत जी
लेकिन ...
सुना होगा आपने भी अवश्य ही - है सबसे मधुर वो गीत , जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं
:)
गंभीर रचना !
... देखिए न , दर्द और पीड़ा में रचाव की संभावनाएं भी बहुत हैं ...
सदैव स्वस्थ-प्रसन्न रहें ... और सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन का प्रसाद बांटती रहें …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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रचना बहुत सुन्दर है, मगर नियमित हो जाइए,
फेसबुक बाद की चीज है, ब्लॉग समझदारों का स्थान है।
सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया |
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