इंसाफ हुआ तो जरुर था



कई राहगीर गुजरे थे 
उस राह से ...
खुले बदन भूख से वो ...
कराहता था वहाँ
कुछ आह भरकर ,
कुछ दीन - हिन कहकर 

आगे भी निकलते थे |
पर रूककर हाल पूछने 
न कोई पास था गया |
एक साया
 बढकर ...
पलभर रुका जरुर था |
जिसे देख बच्चे की आँखों में 
एक सपना था सजा ...
सोचा चलो आज उसे अपनी 

भूख को जाहिर करने का 
जरिया तो मिला |
कई तरह से कैमरे में
फिर उसने उसे कैद था किया |
वो यक़ीनन हमें एक 

भला मानस ही लगा |
भूख और गरीबी ने जिसे 

झकझोर था दिया |
वह रह रहकर उसे 
पुचकार रहा था  |
जैसे सब कुछ मिल जाने का 
उसमे हौंसला हो भर रहा |
सोचा अब उसके भूख का 

निवारण हो जायेगा |
कुछ मिले न मिले ...
भूख का जुगाड हो जायेगा |
जब सुर्ख़ियों में .....
सारा खुलासा हुबहू आएगा |
हाँ ये सच है कि ... इस दर्द की
बोली खुलकर थी लगी |
पर इंसाफ की हक़दार सबको 

दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी   | 

16 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

आह!!!!

कड़वा सच बयाँ कर दिया आपने....

सार्थक रचना...

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

aaj ka 100 % sach

dinesh gautam ने कहा…

हाँ ये सच है कि ... इस दर्द की
बोली खुलकर थी लगी |
पर इंसाफ की हक़दार सबको
दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी
|
रचना हमारे समय की त्रासदी को व्यक्त करती है। यहाँ सहानुभूति अगर कोई दिखाता है तो उसका भी एक मतलब होता है। पढ़ेलिखे वर्ग की संवेदनहीनता को उजागर करती एक उच्छी रचना। बधाई आपको ।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

यथार्थ यही है लेकिन उसको सुंदर शब्दों में जिस तरह से ढाला है वह काबिले तारीफ है.

संध्या शर्मा ने कहा…

ओह... सच है अब तो लोग दर्द का भी सौदा कर लेते हैं...

रविकर ने कहा…

यथार्थ ||
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||

Shikha Kaushik ने कहा…

BAHUT ACHCHHI PRASTUTI .AABHAR
toofan tham lete hain

mridula pradhan ने कहा…

marmik.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चित्र और शब्द एक दूसरे की पीड़ा को गहरा रहे हैं।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

antarman ko chhooti rachna!!

Sumit Madan ने कहा…

Aaj kal sab aise hi hai... or dunia k darr se kisi ko kuch keh bhi nahi skte..

amrendra "amar" ने कहा…

मर्मस्पर्शी..सार्थक रचना....

Ramakant Singh ने कहा…

हाँ ये सच है कि ... इस दर्द की
बोली खुलकर थी लगी |
पर इंसाफ की हक़दार सबको
दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी |
BITTER TRUTH

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!!!! बहुत सुंदर सार्थक रचना,
मीनाक्षी जी,..समर्थक बन गया हूँ,..आप भी बने मुझे खुशी होगी,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

Ramakant Singh ने कहा…

पर इंसाफ की हक़दार सबको
दीवार में टंगी चित्रकारी ही लगी |
when ever i come to across the lines
it call me to read once again.

Minakshi Pant ने कहा…

मेरे सभी सम्मानित मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया :)