कल्पना

चित्रकार की कैसी  है ये कल्पना  |
उसको तो कुछ न कुछ है रंगना |
मंदिर ,  मस्जिद में चला गया |
थी कोशिश इंसा में ही रब को पाना  |
पर कोई भी एसा  नहीं मिला |
अपनी रचना सा नहीं दिखा   |
फिर दूर तलक वो जब पहुंचा  |
बंसी की धुन सुन ठिठक गया |
सृष्टि में एक ख़ामोशी थी |
 बंसी की धुन ही बाकि थी |
चेहरे में उसके  रौनक थी |
उसकी रचना अब  पूरी थी |
उसने उसमें कुछ देखा था |
शायद प्रेम रस ही बरसा  था |
वो उसकी धुन में बह निकला |
सृष्टी के ही रंग में रंग निकला |
फिर एक नई तस्वीर बनी |
इंसा के अन्दर की तस्वीर सजी |
जिसे वो बाहर खोजा करता था |
रंगने को तडपा करता था |
अब उसके रंगों को पंख मिले |
उसके जीवन को ढंग मिले |
अब एसे ना  वो भटकेगा |
खुद अपनी तस्वीर बनाएगा  |
इंसा को इंसा से  मिलाएगा |

हुस्न

                      हुस्न
हुस्न  को संवरनें की जरूरत क्या है |
सादगी भी तो कयामत की नज़र रखती है |
हुस्न जब - जब बेपर्दा होता है |
ज़माने से हर बार रुसवा होता है |
सुना है आजकल हुस्न का अंदाज़
कुछ  बदला - बदला सा लगता है |
पहले हुस्न परदे की ओट में रहा करता था  |
आज  सरे राह नज़रे कर्म  हुआ करता है |
पहले उस तक पहुंचने  को लोग तरसते थे |
अब न चाह कर भी वो हर राह से गुजरता है | 
चिलमन में छुपे  हुस्न का अंदाज़  ही  निराला था |
उसके दीदार में बिछी आँखों का नशा भी सुहाना था |
अब न वो हुस्न है न चाहने वालों का अंदाज़ बाकि है |
अब तो बदला - बदला सा ये सारा जहां नज़र आता है |
चाहने वालों ने भी अपना अंदाज़  कुछ बदला है |
अब वो भी सरे राह का नज़ारा देखते फिरते हैं |
जब हुस्न बेपरवाह है तो...
चाहने वालों की इसमें  क्या  खता हैं ?
फिर उनके सर  दिया गया इल्ज़ाम ...
उनकों बे मतलब में  दी गई एक सज़ा है |
खुद को महफूज एसे रखो की चाहने वाला भी 
तुम्हारे हुस्न पर रशक खाने लगे |
आपके हुस्न पर  वो खुबसूरत गज़ल बनाने लगे |
आप भी उसमें झूम कर खुद को जान सको |
अपनी खूबसूरती के  दो लफ्ज़ तुम भी उसमें बोल सको |

धर्म


बहस से बड़ी कोई बहस नहीं है ,                               
धर्म  से बड़ी कुछ  की जागीर नहीं है  |
ये दुनिया वालो की बनाई हुई  हस्ती है ,
इस पर कोई  बहस मुमकिन ही नहीं है ,
क्युकी , धर्म  से बड़ी कोई ज़ंजीर नहीं है  |
इंसानियत को पूजो इन्सान से प्यार करो |
क्युकी इससे महान कार्य दुनियां में ...
मेरे ख्याल से कोई और  नहीं है |
सब कुछ खत्म हो जायेगा दुनिया में 
पर दुसरे के लिए किया गया उपकार 
उसके दिल में आपका सम्मान कभी नहीं |
उसका नशा अपने अन्दर लाके तो देखो 
खुद के अन्दर इसकी आदत बनाके तो देखो ?
हो न जांए तुम्हें  भी उनसे मोहोब्बत तो कहना 
जरा इस नशे को आजमा के तो देखो |
किस कदर मासूम निगाहों से
हरदम वो तकतें हैं   |
हमारी तरफ हाथ बढ़ाके...
हमसे ही तो वो कुछ कहतें हैं |
क्या हममें उनकी आवाज़ 
सुन पाने का भी दम नहीं |
बढ़के हम उन्हें न थामें 
इतने तो गये गुजरे हम नहीं |
उनके चेहरे पे कुछ पल की 
मुस्कान ही गर हम ला दें  |
उनको उस दुनिया से ...
कुछ पल को बाहर निकाल  दे ,
ये अहसान भी कोई कम नहीं |
क्युकी उनकी ख्वाइशो का पुलिंदा 
हम सा हो ये भी तो मुमकिन नहीं |
हिम्मत तो उनमें है इतनी 
की हमने कभी परखी ही नहीं 
बस थोड़ी सी उनके अन्दर 
विश्वास की ही तो है कमी  |
हमें  तो बस प्यार के 
दो मीठे बोल ही  है कहना |
और उनकी जिंदगी को 
बस एसे ही है रंगीन करना |
क्या इस खुबसूरत धर्म से प्यारा 
कोई और धर्म भी हो है सकता   ...
हम तो कहते हैं इससे प्यारा तो ...
कोई और धर्म हो ही नहीं सकता  |

क्या होता है ये प्यार

प्यार करना आसन है ...
प्यार निभाना आसान नहीं |
प्यार दिल से है होता ...
प्यार कोई दिखावा  तो नहीं |
प्यार समर्पण में है ...
जबरन हासिल किया जाता नहीं |
प्यार दो दिलों की सहमति  में है ...
एक तरफा तो कोई प्यार नहीं |
किसी की अदा ने मोह लिया ...
प्यार इसका भी तो नाम नहीं |
प्यार किसी अहसास  का नाम है ...
बिना अहसास  के तो कोई प्यार नहीं |
प्यार के कई मायने हैं ...
सब प्यार के मायने एक ही तो नहीं |
पति - पत्नी में विश्वास न हो ...
तो वो प्यार भी कोई प्यार नहीं |
दिल में देश के लिए कोई जज्बा न हो ...
ये सम्मान भी  तो कोई सम्मान नहीं |
बच्चों  के दिल में बड़ों का  आदर न हो ...
वो सत्कार भी कोई सत्कार नहीं |
सारी सृष्टि अहसासों  में थमी है ...
बिना अहसास  के तो इन्सान भी  इन्सान नहीं |