कुच्छ फुर्सत के पल लहरों के संग

                     
आज हम सागर किनारे आये हैं 
            कुच्छ उसकी और कुच्छ अपनी सुनाने लाये हैं !
किसको फुर्सत है इस भरी  दुनिया मै , 
                    इसलिए सिर्फ तन्हाई ही साथ लाये हैं !
जानते हैं हम की वो भी अकेला है !
                  क्युकी दुनिया तो भीड़ भरा मेला है !
सब तेरे पहलु मै आके चले जाते हैं !
                 अपना हर दर्द तुझको सुना जाते हैं !
शायद तेरी ख़ामोशी का फायदा उठाते हैं !
                तेरे भीतर  के दर्द को न जान पाते हैं !
तेरी हिम्मत की हम दाद देते हैं !
                  फिर भी तुझसे ये राज़ आज पूछते है !
क्या  एसी बात है की इतना खामोश है तू !
                  हम तो थोड़े से गम मै ही टूट जाते हैं !
तेरी लहरों से तो हमे डर लगता है !
                  फिर भी तुझमे समां जाने का दिल करता है !
ना जाने किस किनारे मै ले जाएँगी ये लहरें !
                  बस तुझसे बिझ्ड़ने का ही डर रहता है !

5 टिप्‍पणियां:

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

बहुत सुन्दर लाईनें । बधाई ।

Rakesh Kumar ने कहा…

ओह! मीनाक्षी जी,
आपके 'कुच्छ' में
तो बहुत कुछ है जी.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi......

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया।

सादर