मत कहो अनाथ
क्यु कहते हैं कुच्छ
लोग खुद को अनाथ
क्या उनके माँ बाबा के ..........
संस्कार उनके साथ नहीं ?
अनाथ तो शायद वो होते हैं
जिनके माँ - बाप तो हैं पर.............
उनके दिल मै उनके लिए
कोई स्थान नहीं
उनके पास सब कुच्छ है
पर उसकी कदर नहीं
अनाथो की तरह रहते हैं
और दर्द उनको देते हैं
केसी चाह है ये इन्सान की ?
जिसके पास माँ बाप नहीं ...........
वो उन्हें पाना चाहता है
और जिसके पास दोनों हैं
वो उसकी कीमत ही नहीं जानता ?
काश वो इस दर्द को
कभी समझ पाता ..............
और माँ पाप का एहसान चुका पाता
वक़्त ही तो है
गुजरने मै कितना
समय लेगा ?
फिर उस दर्द की भरपाई
कोंन करेगा ?
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1 टिप्पणी:
जी हाँ ! एक सामाजिक दर्द यह भी है.
आपके इस इस चिंतन में स्वाभाविकता है.
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