अंदाज़ अपना - अपना

                           

                                          प्यारा सा एक एहसास हु मैं
                                           हर दम तुम्हारे  साथ हु मैं
                                          मुझसे  दूर कहाँ तलक जाओगे
                                      तुम्हारा साया हु मैं  मुझे कहाँ छोड़ पाओगे |
                                                                                             अगर गौर   से देखा जाये तो जिंदगी बहुत तेज़ी से करवट लेती जा रही है हर पल कुछ नया  सा दिख रहा है जिंदगी इतनी तेज़ी से बदलेगी शायद  किसी ने सोचा भी न होगा हर इन्सान हर पल कुछ  नया करने में  जुटा है | इंसा की सोच एक नई दिशा तय कर रही है हर तरफ भाग - दौड  का शोर  मचा हुआ है | किसी को किसी के एहसास  बाँटने की फुर्सत ही कहाँ है बस दिल में एक डर है की कही मेरा प्रदर्शन किसी और से कम न हो जाये और मैं  इस भागती हुई दुनिया के साथ चलने में  पिछड़ न जाऊ | यहाँ तो हाल ऐसा  लगता है जैसे दौड में  हिस्सा  तो लेना ही है अंजाम फिर जो भी हो मजिल मिले  न मिले  कोई बात नहीं | कौन  पीछे  छुट गया किसे ख़ुशी मिली किसे दर्द ... इसका एहसास तो शायद खत्म  ही होता जा रहा है | गाँव अपना आस्तित्व गँवा कर शहर  का रूप धर रही है ,  न जाने शहर में  वो किसको ढूंड रही है | त्याग , प्रतीक्षा  , वादे  और एहसास तो जैसे  गुजरे ज़माने की बात हो चली है | जब  सब चीज़ में  बदलाव आ रहा है तो प्रेम [ प्यार ] भी अपने मायने क्यु  न बदलता उसने भी उसी रफ़्तार का हिस्सा बनना चाहा और उसी की रफ़्तार का रूप धर लिया | आज उसके भी मायने बदल  गये हैं , प्रेम अब भावना और एहसास  न रह कर यथार्थ में  जीने लगा है उसका दायरा संकुचित न हो कर बढता चला जा रहा है उसके अंदाज़ ने नए मायनो को जन्म दिया है अब वो प्यार के साथ - साथ हर वो चीज़ पाना चाहती है जिससे उसकी रफ़्तार बनी रहे और वो इस भागती दुनिया से कदम मिला कर चल सके |
                                      ये इशक  की आग है प्यारे पर ...
                                       अपना .. अपना अंदाज़ है प्यारे
                                                                                   अब देखो न प्यार करने  का भी अपना - अपना अंदाज़ ही तो दीखने को मिलता है पर पुकारा प्यार ही जाता है | प्रेम का अर्थ किसी आस्तित्व को इस कदर चाहना है की उसके आस्तित्व में  ही हर रंग घुलता नज़र आये | अपने को मिटा कर बस उसीके लिए जीना उद्देश्य  बन जाये | फिर उस एहसास को अपने अन्दर भरकर महसूस किया जाये | अब भगत सिंह , राज गुरु , और ऐसे  ही कई क्रांतिकारियों को पर अगर गौर किया जाये तो हम पाएंगे की ... किस कदर का जूनून था अपने देश के लिए क्या ये प्यार नहीं था तो क्या था ? जिसमे न अपनी फिकर थी न मरने  का डर बस दिल में  उसके लिए मर मिटने की चाह जिसमे खुद के लिए पाना कुछ  नहीं सिर्फ देना ही देना था | और इस कदर की मोहोब्बत   भी तो प्यार का ही रूप है | अब मीरा बाई को ही देख लो ... उसने क्या सोच कर कृष्ण से दिल लगाया कैसी  चाहत थी ये की वो महलों  को छोड़ कर सड़कों  पर फिरती रही न कोई चाहत न ही किसी चीज़ का लालच बस उसे अपने दिल में  बसा कर उसी से  निस्वार्थ भाव से प्यार करती रही .... प्रेम एक पूजा है लगन है जहां दिल लगा दो बस उसी का हो जाता है |.
                             एसी लागी लगन मीरा हो गई मगन
                             वो तो गली - गली हरी  गुण गाने लगी
                               महलो मै पली बन के जोगन चली
                                 मीरा रानी दीवानी कहाने लगी  |
                                                                               ये दुनिया भी एक अजीब सी नगरी है सब जानती है पर फिर भी अनजान बनी रहती  है | ये जानते हुए की ये तो हम सब की परझाई है  फिर उसे हमसे जुदा करने  में  लगी रहती है और अनजाने ही इसके एहसास को और मजबूत बाना डालती है क्युकी ये तो मानव का स्वभाव    है की जिस चीज़ से उसे दूर करना चाहोगे वो उसके और करीब आता जायेगा | जो एहसास सबके पास है फिर वो हम सबसे अलग  कैसे  हो सकता हैं उस बात को  झुठलाने से क्या फायदा जो किसी से जुदा हो ही नहीं सकती |अब अगर देखा जाये की जब से सृष्टि  बनी है तब से ये हमारे साथ ही बना हुआ  है जीवन में सब पीछे छुट जाता है ,  पर प्रेम का रंग  हर रूप  में  हमारे साथ चलता रहा है कभी लैला  मजनू , कभी  श्री फरहाद तो कभी हीर राँझा बनके और आज वही एहसास हर घर के बच्चों के दिलो मै पल रहा हैं | पर उनका  अंदाज़ अब वो न रह कर कुछ  इस तरह  हो गया है की उसने संचार माध्यमो का रूप ले लिया है जिसमे एहसास की भूमिका बस कुछ  पलों की ही रह गई है  वो प्यार शब्द तो जानते हैं पर सही मायने मै उसका अर्थ नहीं समझते | आज प्यार गली - मोहल्लो से निकल कर सडको , माल और मेट्रो का हिस्सा बनते जा रहें हैं | कुछ  वक़्त तो एक दुसरे के हाथों में  हाथ डाल कर घूमते हैं एक दुसरे से प्यार का इज़हार करते हैं और अगले ही पल टाटा - बाय बाय कर किसी और की राह तकते हैं |
                ये समझना बहुत मुश्किल सा होता जा रहा है  की कब सच्चा प्यार है और कब धोखा ? इसी सवाल के जवाब में  जिंदगी बीतती जा रही है  क्युकी जितना प्यार मजबूत बनाता है उतना ही प्यार हमे कमजोर भी बना देता  है | आज समूची दुनिया को प्रेम मै रंगे देख कर बस यही ख्याल दिल में  आता है |
                        सबके प्यार में  तासीर हो सच्ची
                         सबके प्यार की ताबीर हो सच्ची |

2 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

Minakshi Pant ji
नमस्कार
आपने जिस गहराई से प्यार शब्द की व्याख्या और उसके बारे में बताया है , ह्रदयस्पर्शी है ...बहुत आभार

Minakshi Pant ने कहा…

आपका हमारे ब्लॉग मै आ कर लेख पड़ना ही बहुत है दोस्त आपने हमारे लिए समय निकला बहुत - बहुत धन्यवाद !