आह



बहुत समय से युवती की व्यथा लिख रही थी !
                आज दिल ने कहा क्यु  न मर्द की आह भी लिख डालू !
 हम कहते हैं की मर्द बेवफा होता है !
                                तो क्या उनके  सीने  मै दर्द नहीं होता  ?
ओरत  तो अपने दर्द को आंसुओ से बयाँ कर देती है !
             मर्द का व्यक्तित्व  तो उसे इसकी भी इज्ज़ाज़त नहीं देता !
 कहाँ समेटता होगा वो इस दर्द को ?
                           वक्त  के साथ सबका छूटता  हुआ साथ !
किसी से कुछ भी तो नहीं कह पाता है वो ,
                  बस अपने आपको अपने मै समेटता चला जाता है !
अपनी भावनाओं  को किसी से कह भी नहीं पाता ,
              उसे भी तो सहानुभति  की जरुरत होती होगी न ?
फिर वो बेवफा केसे हो सकता है ?
                       हमारा प्यार जब उसे हिम्मत दे सकता है !
तो वही प्यार उसे मरहम क्यु  नहीं ?

4 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

bahut sahi kaha aapne

संजय भास्‍कर ने कहा…

दर्द और संवेदना...
सरल और गहरी कविता..
अच्छी लगी..

आभार

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

menaakshi bhn aapki aah or bebsi ne to hmen aapka gen bnaa diya kyaa khub saada andaaz he alfaazon ko khbsurt jzbaaton men piro kr prosne kaa bhyi vaah bhut khub yeh klaa to bs hmen sb kuch bhulaa dene ke liyen khti he mubark ho . akhtrk khan akela kota rajsthan

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

चलिए आपने महसूस तो किया.लेकिन एक पुरुष ज़िन्दगी के असल झंझावातों को उतना नहीं झेलता जितना अबला कही जाने वाली नारी झेलती है.

जो भी हो आपकी ये पंक्तियाँ बहुत ही गहन और संवेदनशील हैं.

सादर