कोंन कहता है की ...
इंसान से इंसान से
प्यार नहीं करता |
प्यार तो बहुत करता है
पर इज़हार नहीं करता |
हर एक... को तो अपने
पहलु से बांधे फिरता है |
पर फिर भी उसे कहने से
हर वक़त ही वो डरता है |
यूँ कहो की पुराने को हरदम
साथ रख कर फिर कुछ
नए की तलाश में रहता है |
उसका कारवां तो
यूँ ही चलता रहता है |
तभी तो ता उम्र वो
परेशान सा ही रहता है |
इस छोटे से दिल में न जाने
कितनों को वो पन्हा देता है |
फिर किसको छोडू किसको रखूं
इसी में उम्र बिता देता है |
जब वो थक हार के
सोचने जो लगता है |
तब तलख जिंदगी का
आधा हिस्सा ही गवां देता है
यूँ कहो की जिंदगी उससे
बहुत दूर निकल जाती है |
यूँ कहो की कसमे वादों की
एक किताब भर रह जाती है |
यूँ कहो की कसमे वादों की
एक किताब भर रह जाती है |
फिर क्यु इस दिल में
सबका का घर बनाये हम |
एक ही काफी नहीं जो
जो सबको आजमाएँ हम |
इन्सान का कारवां तो
हर वक़्त नया गुजरता है |
सबसे हंस- हंस के मिलें
इससे भी तो काम चलता है |
संसार तो प्यारी सी बगिया है |
इसमें रोज़ फूल खिले
तो ये हरदम महकता है |
जिंदगी को खूबसूरती से ये ही
रोशन करता है |
जिंदगी को खूबसूरती से ये ही
रोशन करता है |
हममें जीने का नया होंसला
भी भरता है |
9 टिप्पणियां:
यूँ कहो की पुराने को हरदम
साथ रख कर फिर कुछ
नए की तलाश में रहता है |
bahut sunder
badhai swekar kare
'तो फिर क्यों इस छोटे से दिल में
सबका घर बनायें हम
एक ही काफी नहीं जो
सबको यहाँ बसायें हम '
सत्य वचन ..दिल है कोई कोई धर्मशाला तो नहीं
बहुत बेबाक अभिव्यक्ति ....
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यथार्थ कों चित्रित कर दिया आपने । बेहतरीन प्रस्तुति ।
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bahut sundar likha hai aapne
ताजी और सुगंधित हवा का झोंका.
वाह... बहुत सुन्दर रचना...
बेहतरीन...
अच्छा लिखा है
अपना ब्लॉग मासिक रिपोर्ट
आपने यथार्थ कों चित्रित कर दिया| धन्यवाद|
बहुत सुन्दर रचना...
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