शब्दों का खेल निराला

शब्दों से खेलना मुझे  बहुत अच्छा लगता है |
कितना भी उसे तोड़ - मरोड़ लें ,
कभी कुछ नहीं कहती |
न उसे अपने सम्मान की फ़िक्र है |
 न ही किसी बात का गर्व ,
और न ही कोई घमंड |
हमसे न कोई अपेक्षा रखती है |
न ही किसी उपेक्षा की ही फ़िक्र है |
कितना निस्वार्थ भाव है उसके जीवन में |
कोंन उसका इस्तेमाल कैसे  कर रहा है ,
उससे बेखबर सी रहती है वो |
न अमीरों से कोई मतलब , 
न ही गरीबों से ही घमंड |
हर वक़्त सिर्फ और सिर्फ समर्पण |
एक प्यारे से बगीचे में फूलों को सजाए 
बैठी रहती है |
लोग आते हैं कोई बेदर्दी से उन्हें तोड़ -
मरोड़ देते हैं जो शोलों के रूप में उभर 
कर आग बरसातें हैं |
कुछ शांत भाव से उन्हें शब्दों से एसे 
सजाते हैं की वो रामायण गीता बनकर 
हमें  सुन्दर संस्कार दे जातें हैं |


9 टिप्‍पणियां:

OM KASHYAP ने कहा…

बहुत अच्छी कविता
शुभकामनाये...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शब्द प्रथम सृजन है।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

hame bhi seekhna hai aapse ye shabdo ka khel...!!

sayad ham bhi hain, todne marorne walo me se.!

pyari rachna!

Rahul Singh ने कहा…

कभी खिलवाड़, कभी खेल, कभी सृजन.

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sundar baat , shabd hi insaan ko mahaan banaate hain

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

शब्दों से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता है |
कितना भी उसे तोड़ - मरोड़ लें ,
कभी कुछ नहीं कहती |
न उसे अपने सम्मान की फ़िक्र है |
न ही किसी बात का गर्व ,
और न ही कोई घमंड |
हमसे न कोई अपेक्षा रखती है |.....

बहुत ही गहरे भाव !....बहुत ही सुंदर कविता !

Dr Varsha Singh ने कहा…

कुछ शांत भाव से उन्हें शब्दों से एसे
सजाते हैं की वो रामायण गीता बनकर
हमें सुन्दर संस्कार दे जातें हैं |


लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...

ज्योति सिंह ने कहा…

shabd maun hote par bahut shaktishali .bahut sundar likha hai aapne .aap aai main aabhari hoon .aapki likhi panktiyaan man ko bha gayi .

Patali-The-Village ने कहा…

लाजवाब,बहुत ही सुंदर कविता| धन्यवाद|