कभी इसकी कभी उसकी
वजह से जुड़े रिश्ते |
गुमनामियों की गोंद से
जुड़े हैं सारे रिश्ते |
नये आते नहीं निभाने वाले
पुरानी बात पर अड़े रिश्ते |
सभी है जीतने पे आमादा
सभी हारे जब लड़े रिश्ते |
भला हो उन यादों का ...
जो हर पल साथ चलते है
जब परेशान हमको करें
ये सारे रिश्ते |
हर बात पर जो अड़े
कैसे हैं वो रिश्ते |
मिलकर जो साथ चले
वही तो हैं प्यारे रिश्ते |
मतलब की इस दुनिया में
बहस पर ही टिके हैं सारे रिश्ते |
तेरा - मेरा करते - करते ही
खत्म हो जाते हैं सारे रिश्ते |
झूठे एहसास लिए जिए जा रहें है
ये सारे रिश्ते |
अब कैसे जाने की कहाँ मिलतें हैं
ये निस्वार्थ रिश्ते ?
9 टिप्पणियां:
झूठे एहसास लिए जिए जा रहें है
ये सारे रिश्ते |
अब कैसे जाने की कहाँ मिलतें हैं
ये निस्वार्थ रिश्ते ?
आज की सच्चाई बयान कर दी आपने.
सादर
नि:स्वार्थ रिश्ते तो अब लुप्तप्राय हो गये हैं । अच्छा आइना दिखाया है ....
होते हैं निःस्वार्थ रिश्ते आज भी
उसे पाने के लिए होना होता है निःस्वार्थ
मुश्किल से ही मिलता है ये साथ
इसीलिये मैने लुप्तप्राय लिखा है विलुप्त नही ....
निस्वार्थ रिश्ता तो ऊपर वाला ही देता है, वैसे तो संभव नहीं है
क्या आप एक से ज्यादा ब्लॉग पर एक ही लेख लिखते हैं ?
सामूहिक ब्लॉग संचालकों के लिए विशेष
अच्छा आइना दिखाया है ....
निःस्वार्थ निर्मल रिश्ते, सबको चाहिये बयार।
रिश्तों की दुनिया में अब फूल कम और कांटे ज्यादा दिखते हैं।
अब कैसे जाने की कहाँ मिलतें हैं
ये निस्वार्थ रिश्ते ?
रिश्तों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
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