सूरज ने खुद को जो समेटा है |
शाम ने रात की चादर को ओढा है |
आसमान में तारों का अब पहरा है |
चाँद ने भी तो चुपके से डाला अपना डेरा है |
देखो फिर से वो हंसी रात आई है |
कितने रंगीन सपने वो साथ लाई है |
जाके देखना जरुर आज उस चाँद को ,
क्या अपने लिए भी , वो कोई सौगात लाई है |
वो तो रोज़ चांदनी के संग आता है |
हमारे सपनों में आके हमें चिढाता है |
आज हम भी उसकी चांदनी चुरायेंगे |
देखते हैं आज वो कैसे अपनी रात सजाता है |
हमने भी आज कसम ये खाई है |
चाँद को चांदनी की कसम दिलाई है |
हम भी चांदनी को तब तक न छोड़ेंगे |
जब तक चाँद में दाग क्यु है , ये न जानेगें |
लो आज फिर से ये बात अधूरी रह गई |
हमारे दिल की बात दिल में दबके रह गई |
सूरज की किरणों ने भी दस्तक है दे डाली |
आज फिर से चाँद की चांदनी निगल डाली |`
11 टिप्पणियां:
वाह!बहुत सुन्दर ढंग से आपने चांदनी को पकडे रखने की कोशिश की है.अब सूरज की किरणों के पीछे भी पड़ने का इरादा है क्या? आप कवि हैं.आपके लिए कुछ भी अगम्य नहीं.
वो तो रोज़ चांदनी के संग आता है |
हमारे सपनों में आके हमें चिढाता है |
आज हम भी उसकी चांदनी चुरायेंगे |
देखते हैं आज वो कैसे अपनी रात सजाता है।
सुंदर भावाभिव्यक्ति....इस कविता में भी आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
बहुत उम्दा रचना...
वाह!बहुत सुन्दर ,
इस कविता में भी आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
चाँदनी शीतलता ले कल पुनः आयेगी।
वो तो रोज़ चांदनी के संग आता है |
हमारे सपनों में आके हमें चिढाता है |
आज हम भी उसकी चांदनी चुरायेंगे |
देखते हैं आज वो कैसे अपनी रात सजाता है।
वाह ! मीनाक्षी जी.. आपका भी कोई जवाब नहीं..
बहुत सुन्दर
avinash001.blogspot.com
बहुत ही प्यारी रचना...
बहुत खूब..
दुनाली पर
लादेन की मौत और सियासत पर तीखा-तड़का
निराला अंदाज...
सुंदर भावाभिव्यक्ति !!
bhut hi sunder abhivaykti....
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