कैसी है ये दुनियां

दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है |
जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है |

गर आंसूं आँख में है तो खुद ग़ज़ल है इन्सां |
ऐसे एहसास साथ हों तो शेरों  की जरूरत  क्या है |
गौर से देखो तो सूरज से बड़ी है दुनिया |
फिर भी काली अंधेरों में पड़ी है दुनिया |
राज़ को कैद किया जब - जब इन्सां ने यहाँ |
बंद तालाब में घुट - घुट के सड़ी है दुनिया |
इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई |
फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया |
जिनकी बात मानकर सब सच - सच कहा था मैंने |
आज उसी इन्सां के पक्ष में खड़ी  है दुनिया |
सपनों के एहसास तो हैं नर्म मखमल जैसे |
कैसे गुजरेगी  सख्त पत्थर जैसी है दुनिया  |

18 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

गर आंसूं आँख में है तो खुद ग़ज़ल है इन्सां |
ऐसे एहसास साथ हों तो शेरों की जरूरत क्या है |

आदरणीय मीनाक्षी जी
आज के सन्दर्भों को बहुत सजगता से शब्दों में उकेरा है आपने ...सच में अगर जीवन में हम सहज होते तो हमें यह सब करने की आवश्यकता नहीं पड़ती ..लेकिन आज के दौर में वास्तविकता को इन्सान नजरंदाज कर रहा है और ओपचारिकता को अपना रहा है ...जिससे मानवीय संबंधों में गिरावट आ गयी है ...आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ..!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

bahut sudar , minakshi ji,

दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है |
जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मीनाक्षी जी, कम लफ्जों में बडी बात कह दी आपने। बधाई।

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हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई

फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया '

................हकीक़त को बयाँ करती सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गौर से देखो तो सूरज से बड़ी है दुनिया |
फिर भी काली अंधेरों में पड़ी है दुनिया |
राज़ को कैद किया जब - जब इन्सां ने यहाँ |
बंद तालाब में घुट - घुट के सड़ी है दुनिया |

सटीक बात कह दी है ...सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी ही विचित्र है यह दुनिया।

बेनामी ने कहा…

wah minakshi G

Jyoti Mishra ने कहा…

जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है
Magical line of the post !!
very effective piece of writing.

मनोज कुमार ने कहा…

क्या-क्या देखना पड़ता है, क्या-क्या सुनना पड़ता है। क्या-क्या देखना बाक़ी है, क्या-क्या सुनना बाक़ी है। जैसी है वैसी ही है दुनिया
न जाने कैसी है ये दुनियां!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi badhiyaa

रचना दीक्षित ने कहा…

इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई |
फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया |

दुनिया ऐसी ही है. गंभीर प्रश्न उठातीं सार्थक कविता.
आज कि परिस्थितियों पर गंभीरता से मनन करने के लिए आभार. जब तक सोचेगे नहीं उत्तर भी नहीं मिलेगा.

विभूति" ने कहा…

bhut bhut hi khubsurat succhai ko kahti rachna...

prerna argal ने कहा…

आज उसी इन्सां के पक्ष में खड़ी है दुनिया |
सपनों के एहसास तो हैं नर्म मखमल जैसे |
कैसे गुजरेगी सख्त पत्थर जैसी है दुनिया bahut hi sachchi baat kahi aapne .duniya ke yatharth main kadam rakhte hi iski kathortaa ka pataa chalataa hai,badhaai aapko itani achchi prastuti ke liye.

Jignesh Bapna ने कहा…

nice one...

संजय भास्‍कर ने कहा…

दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है | जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है
,,,,,,,,,,हकीक़त को बयाँ करती सुन्दर रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई |
फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया ..

बहुत खूब ... ये बनाने वाले ही तो नीव में खो गये हैं ... बस अमीर ही रह गये है अब ... तभी तो दुनिया इनके कदमों में है ...

Sunil Kumar ने कहा…

दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है |
जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है|
बहुत सुंदर , सारगर्भित ,शब्दों का चयन बहुत सटीक , आभार........

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

aap ki umda rachnayein padhin...sukoon mila.. main aap ko bhi apne blog per visit ka nimantran de raha hoon.. www.ashutoshmishrasagar.blogspot.com... my unveil emotions.. your comments will help me