पूरी फिर भी अधूरी


मुद्दते बीत गई 
तुम न आये अब तक 
सुबह की हर किरण मुझसे ...
तेरा पता पूछती हैं |
चांदनी आ - आके 
दीदार को तरसती है |
फूल भी अपनी महक 
हरबार बिखेर जाती  हैं |
हवाएं भी देख तुझे ...
अपना रुख बदलती  हैं |
खुबसूरत रूह में महकती 
सी ग़ज़ल हो तुम |
सूरज से निकली किरण
जैसी  भी हो तुम |
खामोश रात की चमक 
जैसी हो तुम |
कभी खुशबु , कभी आंसूं 
कभी संगीत  जैसी हो तुम |
खुबसूरत चेहरे की 
एक प्यारी सी मुस्कान हो तुम |
किसी का प्यार , कल्पना 
और इन्तजार भी हो तुम |
पर फिर भी हकीक़त की तरह 
आज भी अधूरी हो तुम |

9 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन!

सादर

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! उम्दा!!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

wah.... ek mere aur se bhi:)

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बेहतरीन!

Rakesh Kumar ने कहा…

पर फिर भी हकीक़त की तरह आज भी अधूरी हो तुम |

अति सुन्दर प्रस्तुति की है मीनाक्षी जी आपने.
भावों का बेहतरीन गुंथन.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

Rahul Singh ने कहा…

आधी हकीकत, पूरा फसाना.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अधूरेपन में कम से कम पूरे होने की ललक तो रहती है।

Vijuy Ronjan ने कहा…

kabhi khushbu,kabhi aansu kabhi sangeet jaisi ho tum....aur khushbu kabhi tikti nahi...aansu sookh jaate hain,sangeet maddham ho jata hai...adhoori dastann hai ye...adhoorapan liye...

Bahut Badhiya Minakshi ji.

एस एम् मासूम ने कहा…

एक बेहतरीन ग़ज़ल