मुद्दते बीत गई
तुम न आये अब तक
सुबह की हर किरण मुझसे ...
तेरा पता पूछती हैं |
चांदनी आ - आके
दीदार को तरसती है |
फूल भी अपनी महक
हरबार बिखेर जाती हैं |
हवाएं भी देख तुझे ...
अपना रुख बदलती हैं |
खुबसूरत रूह में महकती
सी ग़ज़ल हो तुम |
सूरज से निकली किरण
जैसी भी हो तुम |
खामोश रात की चमक
जैसी हो तुम |
कभी खुशबु , कभी आंसूं
कभी संगीत जैसी हो तुम |
खुबसूरत चेहरे की
एक प्यारी सी मुस्कान हो तुम |
किसी का प्यार , कल्पना
और इन्तजार भी हो तुम |
पर फिर भी हकीक़त की तरह
आज भी अधूरी हो तुम |
9 टिप्पणियां:
बेहतरीन!
सादर
वाह!! उम्दा!!!
wah.... ek mere aur se bhi:)
बेहतरीन!
पर फिर भी हकीक़त की तरह आज भी अधूरी हो तुम |
अति सुन्दर प्रस्तुति की है मीनाक्षी जी आपने.
भावों का बेहतरीन गुंथन.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
आधी हकीकत, पूरा फसाना.
अधूरेपन में कम से कम पूरे होने की ललक तो रहती है।
kabhi khushbu,kabhi aansu kabhi sangeet jaisi ho tum....aur khushbu kabhi tikti nahi...aansu sookh jaate hain,sangeet maddham ho jata hai...adhoori dastann hai ye...adhoorapan liye...
Bahut Badhiya Minakshi ji.
एक बेहतरीन ग़ज़ल
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