प्रकृति प्रेरणा


निखरा कैसा आज गगन , 
झिलमिल करते  यह सूरज किरण |
गति डोल रहे हैं यह खग गन 
ध्वनी  से निकलता ------ जन गन मन ||
यह भरे हुए फूलों का बन 
ऊँचे - ऊँचे हैं ये कानन |
है राष्ट्र प्रेम इनके भी मन 
कह रहे भूमि पर दे दो तन ||
हैं उच्च शिखर में जो हिम गण
दे रहे प्रेरणा यह प्रतिक्षण |
क्या हुआ अगर मिटते  हैं ...हम ,
सुविधा पा लेते अपने जन ||
यह वक्र घाटी में बहता जल ,
कहता है हमसे उछल - उछल |
यूँ पड़े हुए क्यु गति ...टल |
यह तो है वीरों का जन्मस्थल ||

12 टिप्‍पणियां:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

यह तो है वीरों का जन्मस्थल ||

बेहद सुंदर कल्पना ..! उच्च भाव ..!! प्रशंसनीय ....!!!

वाणी गीत ने कहा…

प्रकृति प्रेम के साथ वीरों को भी याद रखा ...
बेहतरीन !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रकृति से प्रेरणा देती अच्छी रचना

Jignesh ने कहा…

Nice thought!!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Sunder Vichar...

Jyoti Mishra ने कहा…

I missed many of your posts as I was disconnected from web.

Loved the imagery of the poem !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्रेरणा देती अच्छी रचना

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

sundar shabdo ki rachna......bahut khub

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sunder man ke bhaav ...

रेखा ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत रचना ....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

यह भरे हुए फूलों का बन
ऊँचे - ऊँचे हैं ये कानन |
है राष्ट्र प्रेम इनके भी मन
कह रहे भूमि पर दे दो तन

सुन्दर संयोजन... उत्तम भाव...
सादर...