वो काली घनी रात
मुझे अपने आगोश में
यूँ लेती चली गई |
बहुत घनघोर उस रात
वहाँ अँधेरा था |
खुद का साया ही
वहाँ एक अकेला था |
दूर फलक पर एक तारा
चमकता दिख गया |
मेरे होंसलें को वो फिर से
बुलंद कर गया |
अब काली रात का आँखों में
भय कुछ कम था |
बस अब तो वो तारा ही
मेरा हमसफर था |
रात तो सारी उससे
गुफ्तगू में निकल गई |
नीद ने कब आगोश में
ले लिया इसकी तो
देर तक खबर ही न हुई |
सूरज ने कब अपनी हंसी
चादर हमपे डाल दी ?
हम रहे अनजान ....
खामोश रात घटा
बनके उड़ गई |
टिमटिमाता तारा ही
हमें आज जीना सिखा गया |
धीमी सी लो को देखकर भी
आगे बढ़ना बता गया |
मत हारना हिम्मत
किसी भी मुश्किल में
रोशनी खुद बढ़के हमें
गले लगायेगी |
हमारे साथ फिर दूर
तलख जायेगी |
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
13 टिप्पणियां:
Vary touching poem.
Regards.
मत हारना हिम्मत
किसी भी मुश्किल में
रोशनी खुद बढ़के हमें
गले लगायेगी |
हमारे साथ फिर दूर
तलख जायेगी |bahut khoob minakshiji.bahut hi gyaanverdhak,bemisaal rachanaa badhaai sweekaren.
adhera ko bhi rang diya apne kalam se...bahut khub!
मत हारना हिम्मत
किसी भी मुश्किल में
रोशनी खुद बढ़के हमें
गले लगायेगी |
हमारे साथ फिर दूर
तलख जायेगी |...bilkul
vh keya kahane, maan ko bha gae
प्रेरणादायक अच्छी रचना ...तारे से सीख लेती अच्छी रचना
इस प्रेरणादायक कविता के लिए आपका इस दिल से आभार....सधे शब्दों में बहुत कुछ समझा दिया आपकी लेखनी ने
The light of hope which is clearly visible in the lines is very captivating !!
Loved it.
कोमल भावों की शानदार कविता ने मन मोह लिया.
रोशनी खुद बढ़के हमें
गले लगायेगी |
हमारे साथ फिर दूर
तलख जायेगी |
क्या कहने, बहुत सुंदर रचना।
शुभकामनाएं
रोशनी से गले मिलने,
रात हमने बितायी है।
सही है हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए....
वाकई रौशनी साथ देगी जरुर.
अंबेडकर और गाँधी
एक टिप्पणी भेजें