आज सोचा फिर , मैं कुछ और लिखूं |
फिर बोला दिल , अब क्या मैं लिखूं |
किसी गीत के कोई बोल लिखूं |
या दिल की ऐसी बात लिखूं |
अपने सपनों की सौगात लिखूं |
या ओरों के ज़ज्बात लिखूं |
कुछ उनकी सुनूं या समझाऊँ |
या ऐसे ही आगे मैं बढ़ जाऊँ |
सूरज की किरणों की सौगात लिखूं |
या आसमान का विस्तार लिखूं |
उन बीते लम्हों की बात लिखूं |
या अब जो है अपने पास लिखूं |
मैं कृष्ण की लीला का अंदाज़ लिखूं |
या पुरषोतम राम का त्याग लिखूं |
मैं हँसते बच्चे की किलकार लिखूं |
या ढलते यौवन के जज्बात लिखूं |
मैं सावन की वो फुहार लिखूं |
या रिमझिम बारिश की रात लिखूं |
आज तुम ही बताओ अब मुझसे ,
की मैं फिर से किसकी बात लिखूं |
18 टिप्पणियां:
वाह मीनाक्षी जी बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत सुंदर प्रस्तुति/ कभी कभी दिल के जज्बातों को कैसे लिखें सनझ नहीं आता /आपने जो लिखा बहुत अच्छा लिखा /बधाई आपको /
सब कुछ तो लिख दिया .. सुन्दर प्रस्तुति
वाह ...बहत ही अच्छा लिखा है आपने ।
अच्छी कविता। इसे पढ़कर तो पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का निबन्ध 'क्या लिखूँ' याद आ गया।
वाह मीनाक्षी जी बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है आपने .... इस खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार....
मीनाक्षी जी,वही लिखियेगा जिससे आपका दिल खुश हो,हमारा भी दिल खुश हो,
यह तभी होगा जब आपका लेखन'सत्यम,शिवम,सुन्दरम'
के लिए ही हो.
आप मेरी समझ में इसी के लिए लिखती आयीं हैं और आगे भी इसी के लिए लिखती रहेंगीं.
आपकी सोच 'अब क्या मैं लिखूँ'बहुत अच्छी लगी.
कुछ अच्छा सा मेरे ब्लॉग पर भी लिख आईयेगा.
आपका इंतजार है.
इतने सारे रूप हैं जगत के सच में मन भ्रमित हो जाता है।
बस, जो मन में आये लिख डालिये।
वाह मीनाक्षी जी बहुत ही सुन्दर ,
सुन्दर प्रस्तुति
very very touching lines....
kuch apne bare mein hi lik dijye
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
बेहतरीन।
सादर
sunder prstuti....
मीनाक्षी जी, क्या लिखने के प्रश्न के बहाने आपने बहुत कुछ लिख दिया।
.......
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
बढ़िया रचना...
सादर...
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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