वो चौराहा ही तो था ,
जहाँ हर तरफ आना- जाना था |
एक पल भी कोई न ठहरा था वहाँ
बस दौड़ती हुई सी जिंदगी
हर पल कोई नया चेहरा
कोई किसी से मुखातिब ही नहीं
एक बैगाना सा चौराहा
हाँ उसी चौराहे में
वो बार - बार आती है |
किसी के इंतज़ार में
दिन - रात बिताती है |
हर निगाह उससे सवाल करती है |
पर उससे वो बेखबर सी रहती है |
अपने हाथों में उसकी निशानी लिए
उसमें ही उसका अक्स खोजती है ,
माथे पर न कोई शिकन , होठों पर
मिठ्ठी मुस्कान लिए जीती है |
उसकी बैचेन रूह उससे सवाल करती है |
वो खुद उन सवालों का जवाब बनती है |
जिंदगी के हसीं पड़ाव पर भी ,
वो तन्हा ही सफर तय करती है |
न था कल , न है आज कोई
ये कहकर वो खुद को
गुलजार करती है |
25 टिप्पणियां:
har baar ek naya ehsas
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
bhaut hi sunder rachna...
चौराहे पर इंतज़ार ...बहुत मार्मिक प्रस्तुति ..
Sahi kaha hai...har kisi ka sach..jee shukriya
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ... दिल को छू गई आपकी रचना...आभार
दिल को छू गई आपकी रचना...आभार
.
प्रिय मीनाक्षी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
न था कल , न है आज कोई
ये कहकर वो खुद को
गुलजार करती है |
बहुत भावपूर्ण कविता है …
लेकिन , कभी तो इंतज़ार पूरा होगा … … … आशा पर ही हर बात चलती है , जीवन चलता है …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सच मे आपकी रचनाओं का बिल्कुल अलग अंदाज और विषय होता है। बार बार पढने का मन होता है।
हर निगाह उससे सवाल करती है |
पर उससे वो बेखबर सी रहती है |
अपने हाथों में उसकी निशानी लिए
उसमें ही उसका अक्स खोजती है ,
माथे पर न कोई शिकन , होठों पर
मिठ्ठी मुस्कान लिए जीती है |
क्या कहने
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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सुंदर रचना...
intzaar aur chauraha dono ka sundar sach darshaya hai ..sundar prastuti
बहुत बढ़िया।
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
sunder bhav ki sarthak rachna............
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
हर निगाह उससे सवाल करती है |
पर उससे वो बेखबर सी रहती है |
अपने हाथों में उसकी निशानी लिए
उसमें ही उसका अक्स खोजती है ,
माथे पर न कोई शिकन , होठों पर
मिठ्ठी मुस्कान लिए जीती है |............वाह....शानदार प्रस्तुति ....मार्मिकता का पुट लिए....गहन अभिव्यक्ति
कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें बार बार पढने का मन होता है। ये भी उनमे से ही एक है।
सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया :)
दिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
दिल को छू गई आपकी रचना...आभार
क्या कहूँ शब्द बहुत भीतर तक कहीं चले आये है .. इन्तजार और यादे , बस जिंदगी इन्ही गलियों में गुजरती है .. बहुत अच्छी नज़्म.. दिल को छु गयी ...दिल से बधाई दोस्त .
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
दिल को छू गई आपकी रचना...आभार
न था कल , न है आज कोई
ये कहकर वो खुद को
गुलजार करती है ....
भावनाओं का तीव्र प्रवाह...
सादर...
ह्रदय स्पर्शी रचना ..बेहद खूब ..
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