तितली ने कहा सुनो सखी ये है आहाट कैसी ?
मैंने कहा अरे ये तो है भवरों के गुंजन जैसी |
फूल कि मुस्कान में न जाने क्या बात थी ऐसी |
जैसे उनको पास आने का निमंत्रण हो देती |
तितली बोली फूल से अभी न तू इतना इतरा |
तेरी पंखुड़ी में बैठकर वो तुझको देंगे बिखरा |
प्यास बुझा वो सब चले जायेंगे बारी - बारी |
तुम पलभर खुश होके रह जाओगी हारी - हारी |
पाने की चाहत में खुद को गँवा लोगी ऐसे तुम |
जाती हुई आहाट को कहाँ पकड़ रख लोगी तुम |
चंदा भी बातें सुनकर हंस हंस के झट से बोला |
सृष्टि के नियम को तुम पर न किसी ने खोला |
सबको एक दूजे में कुछ पाना है कुछ खोना है |
इसी अंदाज़ से हमको आगे को चलते जाना है |
ऐसा सुनकर दोनों अपने आप में ही सिमट गई |
कुछ न कहा किसी से जैसे अब सब समझ गई |
15 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना
फूल कि मुस्कान में न जाने क्या बात थी ऐसी |
जो उस आहाट को अपने पास बुला रही हो जैसी |
क्या कहने
बधाई
आपकी कविता पढ़ कर बहुत पुराना गाना याद आया ..
तितली उड़ी उड़ जो चली
अच्छी प्रस्तुति
वाह बहुत ही सहजता से अस्तित्व बोध करा दिया।
बहुत बढ़िया, संवादों की अभिव्यक्ति।
संवेदनात्मक अभिवयक्ति....
sarthak rachna....
बहुत सुंदर रचना,
बधाई
सबको एक दूजे में कुछ पाना और कुछ खोना है |
फिर सोच - सोच ऐसे तुम को क्यु जीते जाना है |
एकदम सही फर्माया....
सबको एक दूजे में कुछ पाना कुछ खोना है |
ये सोचकर हमको ऐसे ही तो चलते जाना है |
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
क्या बात है ....!
बहुत बढ़िया लाइने हैं यह ! शुभकामनायें आपको !!
sunder bhav ki sunder rachna......
बहुत सुन्दर और सहज अभिव्यक्ति....
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
सही कहा चांद ने- सबको कुछ पाना, कुछ खोना है। सब आधे-अधूरे हैं। मन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति।
आपकी पोस्ट को ब्लोगर मीट वीकली (३) में इस सोमबार ०८/०८/११ को शामिल किया गया है /आप आइये और हमें अपने विचारों से अवगत कराइये/आप ऐसे ही हिंदी साहित्य की सेवा करतेरहें यही कामना है /सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day के मंच पर आप सादर आमंत्रित है /
एक टिप्पणी भेजें