देखो दूर क्षितिज पर कैसा |
अनुपम दृश्य बना है ऐसा |
देख - देख कर मन की मैना |
बोल रही सुन्दर है बिछोना |
कैसे मैं पाऊं उडकर जाऊं |
या मैं कुछ ऐसा भेष बनाऊं |
तुम्ही बताओ युक्ति ऐसी |
जिससे तुमको गले लगाऊं |
आँख करो तुम इस और जरा |
कितना अथाह है शीतल भरा |
ममता विहीन क्या मन तेरा |
जो काँप रहा है ये जन तेरा |
पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |
जब नहीं गगन से तेरा मेल |
फिर क्यु करती तू ऐसा खेल |
सचमुच दुखों को न तू झेल |
आ-जा आ-जा तू करले मेल |
13 टिप्पणियां:
अच्छी लगी यह कविता.
चाह क्षितिज की,
राह अकेली।
पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |
आपने अपनी रचना में कितनी गहरी बात कही है /बहुत सुंदर शब्दों के चयन के साथ लिखी अनूठी और सार्थक रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /आभार /
nice one Excellent piece of writing...
आँख करो तुम इस और जरा |
कितना अथाह है शीतल भरा |
ममता विहीन क्या मन तेरा |
जो काँप रहा है ये जन तेरा |
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ...!
जब नहीं गगन से तेरा मेल |
फिर क्यु करती तू ऐसा खेल |
सचमुच दुखों को न तू झेल |
आ-जा आ-जा तू करले मेल |
लाजवाब......
बहुत सुंदर रचना। आपको पढना वाकई सुखद अनुभव है।
पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |
मेरे सभी सम्मानित मित्रों का बहुत - बहुत शुक्रिया |
bhaut hi sundar....
कैसे मैं पाऊं उडकर जाऊं |
या मैं कुछ ऐसा भेष बनाऊं |
तुम्ही बताओ युक्ति ऐसी |
जिससे तुमको गले लगाऊं |
bahut sunder rachna ........
aur utni hi sunder abhivyakti .......
Brilliant expressions !!
Loved each single verse :)
आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा.बहुत बढ़िया.
बहुत बढ़िया रचना...
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