दूर क्षितिज के उस पार





देखो दूर क्षितिज पर कैसा |
अनुपम दृश्य बना है ऐसा |
देख - देख कर मन की मैना |
बोल रही सुन्दर है बिछोना |

कैसे मैं  पाऊं उडकर जाऊं |
या मैं कुछ ऐसा भेष बनाऊं |
तुम्ही बताओ युक्ति ऐसी |
जिससे तुमको गले लगाऊं |

आँख करो तुम इस और जरा |
कितना अथाह है शीतल भरा |
ममता विहीन क्या मन तेरा |
जो काँप रहा है ये  जन तेरा |

पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |

जब नहीं गगन से तेरा मेल |
फिर क्यु करती तू ऐसा खेल |
सचमुच दुखों को न तू  झेल |
आ-जा आ-जा तू करले मेल |


13 टिप्‍पणियां:

Swarajya karun ने कहा…

अच्छी लगी यह कविता.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चाह क्षितिज की,
राह अकेली।

prerna argal ने कहा…

पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |
आपने अपनी रचना में कितनी गहरी बात कही है /बहुत सुंदर शब्दों के चयन के साथ लिखी अनूठी और सार्थक रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /आभार /

संजय भास्‍कर ने कहा…

nice one Excellent piece of writing...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

आँख करो तुम इस और जरा |
कितना अथाह है शीतल भरा |
ममता विहीन क्या मन तेरा |
जो काँप रहा है ये जन तेरा |

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ...!

Dr Varsha Singh ने कहा…

जब नहीं गगन से तेरा मेल |
फिर क्यु करती तू ऐसा खेल |
सचमुच दुखों को न तू झेल |
आ-जा आ-जा तू करले मेल |

लाजवाब......

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना। आपको पढना वाकई सुखद अनुभव है।

पास नहीं आई थी जब तक |
आस नहीं थी तेरी तब तक |
कहती नहीं अब तुझसे कुछ |
बोल समाई क्यु दृष्टि में तब |

Minakshi Pant ने कहा…

मेरे सभी सम्मानित मित्रों का बहुत - बहुत शुक्रिया |

सागर ने कहा…

bhaut hi sundar....

amrendra "amar" ने कहा…

कैसे मैं पाऊं उडकर जाऊं |
या मैं कुछ ऐसा भेष बनाऊं |
तुम्ही बताओ युक्ति ऐसी |
जिससे तुमको गले लगाऊं |
bahut sunder rachna ........
aur utni hi sunder abhivyakti .......

Jyoti Mishra ने कहा…

Brilliant expressions !!
Loved each single verse :)

Kunwar Kusumesh ने कहा…

आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा.बहुत बढ़िया.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना...