कैसी होती है ...ये सुकूने जिंदगी
भूखे बच्चे को रोटी का निवाला
खिलाकर देखो |
फिर भी न आये दिल में कोई अहसास ...
टपकते उसके आंसूंओं को
अपनों के साथ महसूस करके देखो |
मन जो महसूस कर रहा है
यही जिन्दगी का राज़ है
खुदा कि रहमत का
ये जीता जागता कमाल है
मंदिर मस्जिद में जाने की
अब जरूरत ही न रही |
भूखे बच्चे के चेहरे में
इबादते सुकून जो दिख गया |
फिर किसको खोजते फिर रहें हैं
हम भटक - २ कर दर - बदर ...
ऐसी सुकूने इबादत तो
हर गुजरते राह में देखो |
वो तो परख रहा है
हर रूप में पल - पल हमें |
बस उस अहसास को
खुद में उतारकर कर देखो |
23 टिप्पणियां:
बहुत खूब...
सार्थक रचना.
bahut sundar
सार्थक प्रस्तुति
bahut hi behtarin
sarthak prastuti...
यह एहसास हिलाकर रख देता है..
वाह!
शानदार मार्मिक और सार्थक अभिव्यक्ति.
सुन्दर प्रेरणा देती हुई.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा,मीनाक्षी जी.
वो तो परख रहा है
हर रूप में पल - पल हमें |
बस उस अहसास को
खुद में उतारकर कर देखो |
सही कहा मीनाक्षी जी यही होती है सच्ची इबादत ……किसी भूखे को रोटी खिला दो किसी जरूरतमंद के काम आ जाओ ………मानव सेवा ही भगवान की सेवा है और उसी मे खुदा बसता है…………प्रशंसनीय सार्थक रचना।
बहुत सुन्दर भाव
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति मीनाक्षी जी , धन्यवाद! हलचल से पहली बार आना हुआ आपके ब्लौग पर, अच्छा लगा.
मंदिर मस्जिद में जाने कि
अब जरूरत कैसी ...
बच्चे के चेहरे में ही
इबादते सुकूं को देखो |
कमाल का जज्बा लिखा है आपने..इस स्तर पहुँच जाएँ हम तो फिर कहना ही क्या.
हकीकत में सुकूने जिंदगी
कैसी है होती ...
भूखे बच्चे को एक निवाला
खिलाकर देखो ...
कमाल का लिखा है आपने यही तो है खुदा की सच्ची इबादत। दिल छु गई आपकी यह रचना आभार...
सार्थक सन्देश देती खूबसूरत रचना ..
वाकई, जिनदगी का असली सुकून ददूसरों को खुशो देने में है....
Bahut achhi rachna...
saarthak rachna!
मैं अपने सभी दोस्तों का बहुत - बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ |
आपकी कृति प्रशंशनीय है
अब खुदा कि रहमत को
खुद में बसाकर देखो |
मंदिर मस्जिद में जाने कि
अब जरूरत कैसी ...
बच्चे के चेहरे में ही
इबादते सुकूं को देखो |
Wah! Kya gazab kee rachana hai!
अब खुदा कि रहमत को
खुद में बसाकर देखो |
मंदिर मस्जिद में जाने कि
अब जरूरत कैसी ...
बच्चे के चेहरे में ही
इबादते सुकूं को देखो |
bahut hi khoob soorat prastuti Menakshi ji shukoon kahi aur nahi dil ke bheetar hi hai bs dhoodhane ki jaroorat hai ....badhai sweekaren.
बहुत मार्मिक और सार्थक अभिव्यक्ति.
सार्थक संवेदनशील भाव, मीनाक्षी जी...
बस उस अहसास को खुद में उतारकर कर देखो...
सही कहा है आपने मीनाक्षी जी दूसरे के दुःख को महसूस करना और उसे दूर करने के लिए जो भी हो सकता है उसका प्रयत्न करने से बड़ा कोई सुख नहीं... सुन्दर रचना...
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