तब से अब तक





कैसे पहचानती ?
बहुत लम्बा अरसा बीत चूका 
जिन्दगी में कई पढाव आये 
कुछ अनसुलझे सवाल थे 
जिन्हें सुलझाने में ...
वक्त न जाने कब कहाँ फिसल गया 
हम राह में उड़ते धुल कणों को देखते रह गये 
पर कहते हैं न जिन्दगी करवट लेती है 
और हम फिर उन्ही से आकर टकरा जाते हैं
वक्त बेशक हमें कितनी भी दूर उड़ा ले जाये
पर यादों के वो सतरंगी सपने
कहाँ अपना हौंसला खोते हैं ,
उन्हें अब भी तलाश रहती है
उन अपनों की उन सपनों की ,
वक्त उसे तब अपना न सका था
पर आस ने उनसे नाता जोड़ा था
तब से अब तक |

7 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर!!!!

सस्नेह
अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!! बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.

Madan Mohan Saxena ने कहा…

superb.

संध्या शर्मा ने कहा…

यही आस तो विश्वास है.. बहुत सुन्दर भाव...

राजेश सिंह ने कहा…

उन्हें अब भी तलाश रहती है
उन अपनों की उन सपनों की

सचमुच इस तलाश का कोई अंत नहीं

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

साँस रहेगी, आस रहेगी..

Ramakant Singh ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,आभार,