ये जहान उसकी गूंज सुने |
दर्द इतना हो की
इंसानी रूह भी धरधरा उठे |
प्यार इतना चाहिए की
कायनात उसमे समा जाये |
आंसू इस कदर बहे की
सागर का दायरा भी कम पड़े |
आज़ादी ऐसी हो की
हर बात अपनी बयाँ कर पाऊं |
कैद ऐसी हो की
घुट - घुटकर वही मर जाऊं |
कतरा - कतरा जीना
हमें रास नहीं आता |
टुकड़ों - टुकड़ों में
बंटना हमें नहीं भाता |
हर पल का जीना मरना
बड़ा तकलीफ देता है |
इसलिए पागल कहते हैं सभी
दर्द मेरा कोई न जानता |
कौन हूँ मैं ?
बखूबी जानती हूँ मैं |
परवाह नहीं उनकी नज़र
क्या कहती है मुझे |
अपने अहसास को बेफिक्री से
अंजाम देती हूँ |
लोग हैरान हैं ...
ऐसे कैसे मैं सब कर लेती हूँ |
सबसे अलग हूँ मैं ...
हाँ इसलिए लोग मुझे
पागल कहते हैं |
अपने आप से आज़ाद हूँ
इसलिए मैं खामोश रहती हूँ |
पागल नाम है मेरा
हाँ अब इसी नाम से मशहूर हूँ मैं |
10 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर रचना
क्या बात
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
तथागत http://rajeshakaltara.blogspot.in/2013/05/blog-post.html पर आपका स्नेह बरसे मेरी अपेक्षा
गजब की चाहत
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
बहुत सुन्दर ,दुनिया में सबसे बड़ा पागल या तो सबसे बड़ा वुद्धिमान व्यक्ति है या सबसे बड़ा वैज्ञानिक है या दार्शनिक है ,अपना अपना चयन.
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
मन को छूती है रचना ...
अहसासों के रंगमच पर बिना एहसास पगली भी कितने अहसासों में हैं . इसलिए पगली हूँ मैं , क्या नहीं बताता :)
कतरा-कतरा जीना
हमें रास नहीं आता
टुकडों-टुकडों मेम बंटना
हमें नहीं भाता--
बहुत खूब.
मैं सभी मित्रों का तहे दिल से स्वागत करती हूँ अपना कीमती समय देने के लिए बहुत २ शुक्रिया |
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