सफ़र




किस कदर दोहरी संस्कृति है ये
जहां तात्कालिक लाभ हो
वहां हम आधुनिक ...
वैसे पूरी मनोरचना में पुरातन
क्या तुम्हे नहीं लगता ?
हाँ कुछ ऐसे ही तो
जीवन बसर करते हैं हम लोग
सत्य को खोजने के लिए हमने
सुविधापरस्ती से सम्बन्ध बनाया है
हमारी मूल समस्या यही है
सत्य की खोज ...
पर न जाने उस सफर का आरम्भ
कब होगा ?
अब तक तो पुराने और नये के बीच में
एक दंद्न्द भर है
न पुराना पूरा और अब भी अधुरा
सफर जारी है ...
एक खुबसूरत मंजिल की तलाश को लेकर |

7 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या कहने, बहुत सुंदर
अच्छी रचना..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लाभ नहीं तो त्यक्त डगर है,
गाँव पददलित सजा नगर है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही प्रभावशाली.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रभावी रचना ... सुन्दर भाव मय रचना ...

विभूति" ने कहा…

खुबसूरत अभिवयक्ति......

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

हमारी मूल समस्या यही है
सत्य की खोज ...
पर न जाने उस सफर का आरम्भ
कब होगा ?

पहला कदन उठ जाये तो यात्रा शुरू हो ही जाती है, बहुत सुंदर.

रामराम.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

तलाश जारी रहें .....ये ही तो जिंदगी है