क्या कहे कैसी हसीं वो शाम थी |
ना जाने किसकी याद हमारे पास थी |
सर्द हवाओं का प्यारा सा एहसास था |
बैचेन कर देने वाली रूह का जो साथ था |
जान कर हम ना जाने क्यु अनजान थे |
मीठे -मीठे दर्द से तब हम बेजान थे |
सर्द हवाएं बदन को छु कर जा रही थी |
प्यारी - प्यारी बातें दिल में उतर रही थी |
मीठे से दर्द का एहसास दिल के करीब था |
कहते भी कीससे हर कोई तो हमसे दूर था |
रात ने भी जो दस्तक देना शुरू किया |
नींद ने भी अपनी आग़ोश में लेना शुरू किया |
बात जहां से शुरू हुई वही पर खत्म हो गई |
यादें भी अपने पंख समेटे हमसे विदा हुई |
अब ना जाने वो अपना कब पैगाम सुनाएगी |
अपने प्यारे एहसासों से फिर से हमें जगाएगी |
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना । अच्छे मनोभाव । शुभकामनायें ।
"बात जहां से शुरू हुई वही पर ख़तम हुई !
यादे भी अपने पंख समेटे हमसे विदा हुई !" bahut umda rachna.. har sher laajawab..
बहुत ही सुन्दर भाव.
बेहतरीन
वाह ... बहुत सुन्दर कविता मन को भावुक कर दिया आभार / शुभ कामनाएं
कविता की गेहेराई पे कवी की भावना ही नहीं पर उनके ह्रदय के परिभाषा समझ में आता है I बहुत सुन्दर ....
आपकी शब्द रचना वहुत सुंदर हैं । कविता के लिए बस इतना ही कहूंगा अति भावुक करने वाली कविताएं हैं आपकी ।
तरूण कुमार, सावन
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