इसरा अबदेल
क्या होता है ये सृज़न ? क्या तोड़ - फोड़ , शोर - गुल के माध्यम से ही इसे लाया जा सकता है | नहीं... सृज़न जब भी होता है तो अधिकतर मौन के रूप में ही आता है जिसका असर हर तरफ नज़र आता है और ये सब कर पाना कोई कठिन नहीं क्युकी इतिहास तो बनता और बिगड़ता रहता है | इतिहास को बनाने और बिगाड़ने का सबसे बड़ा हाथ हम इंसानों को ही जाता है | अगर हम दिल में ठान ले की हमने कुछ एसा करना है जिससे हम एक नया इतिहास रच दे तो एसा करना बहुत बड़ी बात नहीं हमें कुछ एसा करना होगा की इन्सान खुद हमसे जुड़कर आगे बढ़ने और हमारा साथ देने को मजबूर हो जाये | ये काम भीड़ भरी जनता के सामने भाषण देने से ज्यादा खामोश रह कर कुछ एसा रचने से होगा जिससे किसी को नुकसान भी न हो और हम अपने काम में सफल भी हो जाये क्युकी भीड़ के शोर में वो ताक़त नहीं होती जितना शांत रहकर सृजन करने में है | मौन सृजन में इतनी ताक़त है की वो सत्ता का तख्ता पलटने तक की ताक़त रखती है |
रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख से ही न टपके तो फिर लहू क्या है |
कहते हैं ये शेर मिर्ज़ा ग़ालिब ने बहुत समय पहले हिंदुस्तान में कहा था पर एसा लगता है की मिस्र की काहिरा विश्वविद्यालय की छात्रा ' अस्मां महफूज़ ' ने भी इसे जरुर पढ़ा होगा जिसने इसे पढ़कर मिस्र में एक क्रांति लाने की ठान ली | वो वहां के लोगों की गरीबी , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और मानवाधिकारियों के हनन से त्रस्त मिस्र के लोगों की सरकार के खिलाफ बगावत की अग्रदूत बन गई थी अस्मां | अपने इंटरव्यू में उसने कहा था की हाँ में नाराज़ थी ___सबके मुहं से ये सुनती थी की हमें कुछ करना चाहिए पर कोई कुछ नहीं कर पा रहा था | इसलिए एक दिन मैनें फेस - बुक पर लिख डाला की दोस्तों ____ मैं आज तहरीर चौक पर जा रही हूँ मैं वहां अपना अधिकार मागुंगी | यह 25 जनवरी की बात है वह कुछ लोगों के साथ वहां गई पर उसे वहां प्रदर्शन करने नहीं दिया | उसके बाद उसने एक विडिओ बनाई जिसमें लोगों को उनसे इस मुहीम में जुड़ने की अपील थी और इसे ब्लॉग और फेसबुक पर डाल कर प्रसारित किया ये विडिओ जंगल में आग की तरह फैल गया और एक बार फिर मौन सृजन हुआ |
अस्मां की तरह मिस्र की अहिंसक क्रांति के दौरान कई नायक जन्में जिन्होनें सोशल मिडिया का इस्तेमाल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा डाला | गूगल के अधिकारी ' वेल गोमिन ' और मिस्र की एक निजी कम्पनी में मानव संस्थान समन्वयक रही ' इसरा अबदेल फातेह ' इन्ही लोगों में से है | इसरा अबदेल ने 2008 में मिस्र के लोगों को फेसबुक की एहमियत से पहली बार परिचित कराया | उस वक़्त सिर्फ 27 की इस लड़की ने वह कारनामा कर दिखाया था जिसे वहां के विरोधी दल नहीं कर पा रहे थे | इसरा के फेसबुक पेज ने चुपके से 70 ,000 लोगों को अपने साथ जोड़ा , जिन्होंने देश में पहली सार्वजनिक हड़ताल को सफल बनाने में खास भूमिका निभाई | नतीजा ये हुआ की इसरा को गिरफ्तार कर लिया गया | करीब दो हफ्ते बाद इसरा रिहा हुई और इसका नाम ' फेसबुक गर्ल ' के नाम से मशहूर हो गया |
किसी खास मुद्दे पर कैंपेन चलाना , क्रांति को हवा देना ये सब नेटवर्किंग के जरिये एक मौन सृजन ही तो है , जो हैती से मिस्र और भारत तक ये मौन रहकर अलग -अलग उदाहरणों के साथ सोशल मिडिया की ताक़त हमें दिख रही है और इसकी चुप्पी रोज़ नए - नए आयाम गढ़ती जा रही है | हाँ इसी का नाम तो मौन सृजन है जो खामोश रह कर इतिहास को बदलता जा रहा है |
7 टिप्पणियां:
नजीर है यह मौन सृजन.
बेहतरीन परस्तुति
बहुत बढ़िया आलेख.
नेटवर्किंग से क्रांती लाई जा सकती है.
सलाम.
मन में दबे अन्याय को राह मिल गयी।
sundar prastuti
net working se kranti layee ja sakti hai...lekin ham to bas isko apne blog ke comment pane ka jariya bana rahe hain..:D hai na sach!!
waise ek achchha aalekh!
minakshi jee ab aapko hi aage aana parega..aisa kuchh karne:)
true.....
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